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________________ २९६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [ १, २, ७३. सम्माइद्विणो होति । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा तस्सेव सम्मामिच्छाइद्विणो होति । सेसं असंखेजखंडे कए बहुखंडा सासणसम्माइट्ठिणो होति । एवं णेयव्वं जाव सदार सहस्सारो ति । तदो जोइसिय-वाण-तर-भवणवासिय-तिरिक्ख-पढमादि जाव सत्तमपुढवि त्ति णेयव्वं । सेसं संज्जखंडे कए बहुखंडा आणद-पाणदअसंजदसम्माइट्ठिणो होति । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा आरणच्चुदअसंजदसम्माइद्विणो होति । एवं णेयव्वं जाव उवरिमउवरिमगेवज्जअसंजदसम्माइहि त्ति । सेसं संखेजखंडे कए बहुखंडा आणद-पाणदमिच्छाइट्ठी होति । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा आरणच्चुदमिच्छाइट्ठी होति । एवं यव्वं जाव उपरिमुवरिमगेवजमिच्छाइडि ति। सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा अणु दिसअसंजदसम्माइट्ठिणो होति । सेसमसंखेज्जखंडे कए बहुखंडा अणुत्तरविजय-वइजयंत-जयंत-अवराइदअसंजदसम्माइट्टी होति । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा आणदपाणदसम्मामिच्छाइट्टी होति। सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा आरणच्चुदसम्मामिच्छाइट्ठी होति । एवं णेयव्यं जाव उपरिमुवरिमगेवज्जसम्मामिच्छाइहि ति। सेसं संखेज्जखंडे कए संख्यात खंड करने पर उनसे बहुभागप्रमाण उन्हीं सौधर्म और ऐशान कल्पके सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका प्रमाण है। शेष एक भागके असंख्यात खंड करने पर उनमेंसे बहुभागप्रमाण सौधर्म और ऐशान कल्पके सासादनसम्यग्दृष्टि जीव हैं। इसप्रकार शतार और सहस्रार कल्पतक ले जाना चाहिये। इसके आगे ज्योतिषी, वाणव्यन्तर, भवनवासी, तिर्यंच और प्रथमादि सातों पृथिवियोंतक ले जाना चाहिये। सातवीं पृथिवीके सासादनसम्यग्दृष्टियोंके प्रमाणके अनन्तर जो एक भाग शेष रहे उसके संख्यात खंड करने पर बहुभागप्रमाण आनत और प्राणतके असंयतसम्यग्दृष्टि जीव हैं। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभागप्रमाण आरण और अच्युतके असंयतसम्यग्दृष्टि जीव हैं। इसीप्रकार उपरिम उपरिम प्रैवेयकके असंयतसम्यग्दृष्टियोंके प्रमाण आनेतक ले जाना चाहिये। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभागप्रमाण आणत और प्राणतके मिथ्यादृष्टि देव हैं। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभागप्रमाण आरण और अच्युत कल्पके मिथ्यादृष्टि देव हैं। इसीप्रकार उपरिम उपरिम ग्रैवेयकके मिथ्यादृष्टि देवोंके प्रमाण आनेतक ले जाना चाहिये । शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभागप्रमाण अनुदिशके असंयतसम्यग्दृष्टि देव हैं। शेष एक भागके असंख्यात खंड करने पर बहुभागप्रमाण विजय, वैजयंत, जयन्त और अपराजित इन जार अनुत्तरोंके असंयतसम्यग्दृष्टि देव हैं। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर उनमेंसे बहुभागप्रमाण आनत और प्राणतके सम्यमिथ्यादृष्टि देव हैं। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर उनमेंसे बहुभागप्रमाण आरण और अच्युतके सम्यग्मिथ्यादृष्टि देव हैं। इसीप्रकार उपरिम उपरिम ग्रैवेयकके सम्यग्मिथ्यादृष्टि देवोंके प्रमाण आनेतक ले जाना चाहिये। उपरिम उपरिम अवेयकके सम्यग्मिथ्यादृष्टि देवोंके प्रमाणके अनन्तर शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर उनमें से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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