SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 382
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १, २, ७३.] दव्वपमाणाणुगमे देवगदिअप्पाबहुगपरूवणं [ २८९ असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? सगविक्खभसई । दव्बमसंखेज्जगुणं । को गुणगारो ? विक्खंभसई । पदरमसंखेज्जगुणं । को गुणगारो ? अवहारकालो । लोगो असंखेजगुणो । को गुणगारो ? सेढी । सासणादीणं मूलोघभंगो। सोहम्मादि जाव उवरिमगेवज्जो ति सत्थाणप्पाबहुगं जाणिय णेयव्वं ।। परत्थाणे पयदं । सव्वत्थोवो असंजदसम्माइडिअवहारकालो । एवं णेयव्वं जाव पलिदोवमो त्ति । तदो उवरि मिच्छाइडिअवहारकालो असंखेज्जगुणो। को गुणगारो ? सगअवहारकालस्स असंखेज्जदिभागो। को पडिभागो ? पलिदोवमो । अहवा पदरंगुलस्स असंखेज्जदिभागो असंखेज्जाणि सूचिअंगुलाणि । केत्तियमेत्ताणि ? सूचिअंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्ताणि । को पडिभागो ? पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागो । उवरि सत्थाणभंगो । भवणवासियाण सव्वत्थोवो असंजदसम्माइट्ठिअवहारकालो । एवं णेयष्वं जाव पलिदोवमो ति । तदो उवरि भवणवासियमिच्छाइटिविक्खंभसूई असंखेज्जगुणा । को गुणगारो? सगविक्खंभसूईए असंखेजदिभागो। को पडिभागो ? पलिदोवमो । अहवा पदरंगुलस्स असंखेजदिभागो। असंखेज्जाणि सूचिअंगुलाणि । केत्तियमेत्ताणि ? सूचिअंगुलपढमवग्गमूलस्स असंखेजदिभागमेत्ताणि । को पडिभागो ? पलिदोवमो । उवरि है ? अपनी विष्कंभसूची गुणकार है । उन्हींका द्रव्य जगश्रेणीसे असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? विष्कंभसूची गुणकार है। द्रव्यसे जगप्रतर असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? अवहारकाल गुणकार है। जगप्रतरसे लोक असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? जगश्रेणी गुणकार है । सासादनसम्यग्दृष्टि आदिका मूलोघके समान स्वस्थान अल्पबहुत्व है। सौधर्मसे लेकर उपरिम ग्रैवेयकतक स्वस्थान अल्पबहुत्व जान कर ले जाना चाहिये। ___अब परस्थानमें अल्पबहुत्व प्रकृत है- असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल सबसे स्तोक है । इसीप्रकार पल्योपमतक ले जाना चाहिये । पल्योपमके ऊपर मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? अपने अवहारकालका असंख्यातवां भाग गुणकार है। प्रतिभाग क्या है ? पल्योपम प्रतिभाग है। अथवा, प्रतरांगुलका असंख्यातवां भाग गुणकार है जो असंख्यात सूच्यंगुलप्रमाण है। असंख्यात सूच्यंगुलोंका प्रमाण कितना है ? सूच्यंगुलका असंख्यातवां भाग उनका प्रमाण है। प्रतिभाग क्या है ? पल्योपमका संख्यातवां भाग प्रतिभाग है। इसके ऊपर अपने स्वस्थान अल्पबहुत्वके समान है। भवनवासियोंके परस्थानका कथन करने पर असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल सबसे स्तोक है। इसीप्रकार पल्योपमतक ले जाना चाहिये। पल्योपमके ऊपर भवनवासी मिथ्यादृष्टि विष्कंभसूची असंख्यातगुणी है । गुणकार क्या है ? अपनी विष्कंभसूचीका असंख्यातवां भाग गुणकार है। प्रतिभाग क्या है ? पल्योपम प्रतिभाग है। अथवा, प्रतरांगुलका असंख्यातवां भाग गुणकार है, जो असंख्यात सूच्यंगुलप्रमाण है। वे कितने हैं? सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमूलके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। प्रतिभाग क्या है? पल्योपम प्रतिभाग है। इसके ऊपर वाणव्यन्तरोंसे लेकर उपरिम उपरिम अवेयकतक अपने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy