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________________ २८८] छक्खंडागमे जीवड्डाणं [ १, २, ७३. ___ अप्पाबहुअंतिविहं, सत्थाणं परत्थाणं सबपरत्थाणं चेदि । सत्थाणे पयदं । सम्वत्थोवो देवमिच्छाइद्विअवहारकालो । विक्खंभसूई असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? विक्खंभसूईए असंखेजदिभागो। को पडिभागो ? सगअवहारकालो। अहवा सेढीए असंखेज्जदिभागो असंखेज्जाणि सेढिपढमवग्गमूलाणि । को पडिभागो ? अवहारकालवम्गो। अहवा असंखेज्जाणि घणंगुलाणि । केत्तियमेत्ताणि ? पण्णहिसहस्स-पंचसयछत्तीसवग्गसूचिअंगुलमेत्ताणि । सेढी असंखेज्जगुणा। को गुणगारो ? अवहारकालो । दव्वमसंखेज्जगुणं । को गुणगारो ? सगविक्खंभसूई । पदरमसंखेज्जगुणं । को गुणगारो ? सगअवहारकालो। लोगो असंखेजगुणो। को गुणगारो ? सेढी । सासणादीणं मूलोघभंगो। एवं जोइसिय-वाणवेंतराणं पि जेयव्वं । भवणवासियाणं सत्थाणे सव्वत्थोवा मिच्छाइटिविक्खंभसूई । अवहारकालो असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? सगअवहारकालस्स असंखेज्जदिभागो। को पडिभागो ? विक्भसूई। अहवा सेढीए असंखेजदिभागो असंखेजाणि सेढिपढमवग्गमूलाणि । को पडिभागो। विक्खंभसूचिवग्गो। अहवा घणंगुलं । सेढी ___ अल्पबहुत्य तीन प्रकारका है, स्वस्थान अल्पबहुत्व, परस्थान अल्पबहुत्व और सर्वपरस्थान अल्पबहुत्व । इनमेंसे स्वस्थान अल्पबहुत्व में प्रकृत विषयका निरूपण करते हैंदेव मिथ्यादृष्टि अवहारकाल सबसे स्तोक है । उन्हींकी विष्कभसूची अवहाकालसे असंख्यातगुणी है। गुणकार क्या है ? अपनी विष्कंभसूचीका असंख्यातवां भाग गुणकार है। प्रतिभाग क्या है? अपना अवहारकाल प्रतिभाग है। अथवा, जगश्रेणीका असंख्यातवां भाग गुणकार है, जो जगश्रेणीके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है। प्रतिभाग क्या है? अवहारकालका घर्ग प्रतिभाग है। अथवा, असंख्यात घनांगुल गुणकार है। वे कितने हैं ? पेंसठ हजार पांचसौ छत्तीसके वर्गरूप सूच्यंगुलप्रमाण हैं। देव विष्कंभसूचीसे जगश्रेणी असंख्यातगुणी है । गुणकार क्या है ? अपना अघहारकाल गुणकार है। जगश्रेणीसे मिथ्यादृष्टि देवोंका प्रमाण असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? अपनी विष्कंभसूची गुणकार है। देव मिथ्यादृष्टि द्रन्यसे जगप्रतर असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? अपना अवहारकाल गुणकार है। जगप्रतरसे घनलोक असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? जगश्रेणी गुणकार है। देव सासादनसम्यग्दृष्टियोंका स्वस्थान अल्पबहुत्व सामान्य प्ररूपणाके समान है। इसीप्रकार ज्योतिषी और वाणव्यन्तरोंका भी स्वस्थान अल्पबहुत्व ले जाना चाहिये। भवनवासियोंके स्वस्थान अल्पबहुत्वमें सबसे स्तोक मिथ्यादृष्टि विष्कंभसूची है। उससे अवहारकाल असंख्यातगुणा क्या है? अपने अवहारकालका असंख्यातवां भाग गुणकार है प्रतिभाग क्या है ? विष्कंभसूची प्रतिभाग है। अथवा, जगश्रेणीका असंख्यातवां भाग गुणकार है जो जगश्रेणीके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है। प्रतिभाग क्या है ? अपनी विष्कंभसूचीका वर्ग प्रतिभाग है। अथवा घनांगुल गुणकार है। जणश्रेणी अवहारकालसे असंख्यातगुणी है। गुणकार क्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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