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________________ १, २, ७३. ] toryमाणागमे देवगदि भागाभाग परूवणं [ २८७ जावुवरिमउवरिमगेवज्जो त्ति । सेसस्स संखेज्जखंडे कए बहुभागा आणंद-पाणदमिच्छाइट्ठो होंति । सेसस्स संखेज्जखंडे कए बहुभागा आरणच्चदमिच्छाइड्डिणो होंति । एवं यव्वं जानुवरिमउवरिमगेवज्जो ति । सेसस्स संखेज्जखंडे कए बहुभागा अणुद्दिसअसंजदसम्माइट्टिणो होंति । सेसम संखेज्जखंडे कए बहुभागा अणुत्तरविजय- वइजयंत जयंतअवराइदअसंद सम्माइद्विणो होंति । सेस संखेज्जखंडे कए बहुभागा आणद- पाणदसम्मामिच्छाइद्विणो होंति । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुभागा आरणच्चुदसम्मामिच्छाइट्टिणो होंति । एवं यव्वं जावुवरिमउवरिमवज्जो त्ति । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुभागा आणद- पाणदसासन सम्माइट्टिणो होंति । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुभागा आरणच्चुदसासणसम्माइद्विणो होंति । एवं यव्त्रं जावुवरिममज्झिमगेषज्जसासणसम्माडिति । समसंखेज्जखंडे कए बहुभागा उवरिमउवरिमगेवज्जसासणसम्माइहिणो होंति । एयखंड सन्त्रसिद्धिअसंजदसम्माइडी होंति । एवं भागाभागं समत्तं । इसीप्रकार उपरिम उपरिम ग्रैवेयक तक ले जाना चाहिये । उपरिम उपरिम ग्रैवेयक के असंयतसम्यग्दृष्टियों के प्रमाण आनेके अनन्तर जो एक भाग शेष रहे उसके संख्यात खंड करने पर बहुभागप्रमाण आनत और प्राणतके मिध्यादृष्टि देव हैं। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर उनमें से बहुभाग आरण और अच्युतके मिथ्यादृष्टि देव हैं। इसीप्रकार उपरिम उपरिम ग्रैवेयकत्तक ले जाना चाहिये । उपरिम उपरिम ग्रैवेयकके मिध्यादृष्टिप्रमाणके अनन्तर जो एक भाग शेष रहे उसके संख्यात खंड करने पर बहुभाग अनुदिश के असंयतसम्यग्दृष्टि होते हैं। शेषके असंख्यात खंड करने पर बहुभाग विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित इन चार अनुत्तर विमानोंके असंयतसम्यग्दृष्टि देव हैं। शेषके संख्यात खंड करने पर बहुभागप्रमाण आनत और प्राणतके सम्यग्मिथ्यादृष्टि देव हैं। शेष एक भाग संख्यात खंड करने पर उनमें से बहुभागप्रमाण आरण और अच्युतके सम्यग्मिथ्यादृष्टि देव हैं । इसीप्रकार उपरिम उपरिम ग्रैवेयक तक ले जाना चाहिये । उपरिम उपरिम ग्रैवेयक के सम्यग्मिथ्यादृष्टियों के प्रमाण के अनन्तर जो एकभाग शेष रहे उसके संख्यात खंड करने पर उनमें से बहुभागप्रमाण आनत और प्राणत के सासादन सम्यग्दृष्टि देव हैं। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर उनमें से बहुभागप्रमाण आरण और अच्युतके सासादन सम्यग्दृष्टि देव हैं । इसीप्रकार उपरिम मध्यम ग्रैवेयक के सासादनसम्यग्दृष्टियों के प्रमाण आने तक ले जाना चाहिये । उपरिम मध्यम ग्रैवेयक के सासादन सम्यग्दृष्टियोंके प्रमाणके अनन्तर जो एक भाग शेष रहे उसके असंख्यात खंड करने पर उनमें से बहुभागप्रमाण उपरिम उपरिम ग्रैवेयकके सासादन सम्यग्दृष्टि देव हैं। शेष एक खंडप्रमाण सर्वार्थसिद्धि के असंयतसम्यग्दृष्टि देव हैं। इसप्रकार भागाभाग समाप्त हुआ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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