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१, २, ७२. ]
दव्यमाणागमे देवगदिपमाणपरूवणं
[ २८१
मूलं । सदार- सहस्सारकप्पे चउत्थवग्गमूलं भागहारो हवदि । सासणदीणं पमाणपरूवणा वि सत्तम पुढविपरूवणाए समाणा । विसेसपरूवणं पुरदो वत्तइस्तामो ।
आद-पाद जाव णवगेवेज्जविमाणवासियदेवेसु मिच्छाइट्टि पहुडि जाव असंजदसम्माइट्टि त्ति दव्वपमाणेण केवडिया, पलिदोवमस्स असंखेज्जादिभागो । एदेहि पलिदोवममवहिरदि अंतोमुहत्तेण ॥ ७१ ॥
मुहुत्तसद्दो कालवाची चेव, तेण पुध कालग्गहणं ण कदं । दव्त्रपमाणपरूवणाए चेव अत्थणिच्छओ जादो ति एत्थ खेत- कालेहि परूवणा ण कदा | 'पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो' इदि सामण्णेण वृत्ते दव्त्रपमाणेण सुड्डु णिच्छओ ण जादो त्ति तत्थ णिच्छयउपायण 'एदेहि पलिदोष ममवहिरदि अंतोमुहुत्तेण' त्ति भागहारपरूवणा विहजमाणपरूवणा च कदा । एत्थ आइरिओवएसमस्सिऊण विसेसवक्खाणं पुरदो भणिस्सामा । अणुद्दिस जाव अवराइदविमाणवासियदेवेसु असंजदसम्माहट्टी दव्वपमाणेण केवडिया, पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । एदेहि पलिदोवममवहिरदि अंतोमुहुत्ते ॥ ७२ ॥
जगश्रेणीका भागहार जगश्रेणीका पांचवां वर्गमूल है । शतार और सहस्रार कल्पमें जगश्रेणीका भागद्दार जगश्रेणीका चौथा वर्गमूल है । सानत्कुमारसे लेकर सहस्रारतक सासादनसम्यग्दृष्टि आदि गुणस्थानवर्ती देवोंके प्रमाणकी प्ररूपणा भी सातवीं पृथिवीके सासादनसम्यग्दृष्टि आदि जीवोंके प्रमाणकी प्ररूपणा के समान है। विशेष प्ररूपणाको आगे बतलावेंगे ।
आनत और प्राणतसे लेकर नौ ग्रैवेयक तक विमानवासी देवोंमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानतक प्रत्येक गुणस्थानमें जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? पल्योपमके असंख्यातवें भाग हैं । इन उपर्युक्त जीवराशियों के द्वारा अन्तर्मुहूर्त से पल्योपम अपहृत होता है ।। ७१ ।।
मुहूर्त शब्द कालवाची ही है, इसलिये सूत्रमें पृथक्रूपसे काल पदका ग्रहण नहीं किया । प्रकृत में द्रव्यप्रमाणके प्ररूपण करनेसे ही अर्थका निश्चय हो जाता है, इसलिये यहां पर क्षेत्रप्रमाण और कालप्रमाणके द्वारा प्ररूपणा नहीं की । ' पल्योपमके असंख्यातवें भाग है इसप्रकार सामान्य से कहने पर द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा अच्छी तरह निश्चय नहीं हो पाता है, इसलिये इस विषय में निश्चयके उत्पन्न करानेके लिये ' इन जीवराशियोंके द्वारा अन्तर्मुहूर्तसे पल्योपम अपहृत होता है' इसप्रकार भागहारप्ररूपणा और विभाज्यमाणराशिकी प्ररूपणा की । इस विषय में आचार्योंके उपदेशका आश्रय करके विशेष व्याख्यान आगे कहेंगे
अनुदिश विमानसे लेकर अपराजित विमानतक उनमें रहनेवाले असंयतसम्य
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