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________________ छक्खंडागमे जीवाणं [ १, २, ६९. सासणसम्माइट्टि - सम्मामिच्छाइट्टि - असंजदसम्माइट्ठी ओघं ॥ ६९ ॥ २८० ] सोहम्मीसाणकष्पवासियदेवेसु देवगईए इदि च दुवयणमणुवट्टदे | एसा दव्वद्वियणयमस्सिऊण परूवणा उत्ता । पज्जवट्ठियणयमस्तिऊण एदेसिं परूवण पुरदो भणिस्सामा | सण कुमार पहुडि जाव सदार- सहस्सार कप्पवासियदेवेसु जहा सत्तमाए पुढवीए णेरइयाणं भंगो ॥ ७० ॥ एत्थ जहा इदि बुत्ते तं जहा इदि एदस्स अत्थो ण वत्तव्वो किंतु उवमत्थे जहा सो घेत्तव्वो । जहा सत्तमाए पुढवीए णेरइयाणं पमाणं परूविदं तहा सणक्कुमारादिदेवाणं पमाणं परूवेदव्वं (णवरि आइरिय परंपरागदोवदेसेण वसव तं जहा सण कुमार माहिंदे जगसेढीए भागहारो सेढीए हेडा एक्कारसवग्गमूलं । बम्ह-बम्होतरकप्पे वमवग्गमूलं । लांव- कापिडकप्पे सत्तमवग्गमूलं । सुक्क महासुक्ककप्पे पंचमवग्ग सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि सौधर्म-ऐशान कल्पवासी देव सामान्य प्ररूपणा के समान पल्योपमके असंख्यातवें भाग हैं ॥ ६९ ॥ ' सोहम्मीसाणकप्पवासियदेवेस देवगईए' इन दो शब्दोंकी यहां अनुवृत्ति होती है । यहां द्रव्यार्थिक नयका आश्रय करके यह प्ररूपणा कही है। पर्यार्थिक नयका आश्रय करके इनकी प्ररूपणा आगे कहेंगे । जिसप्रकार सातवीं पृथिवीमें नारकियोंकी प्ररूपणा कही गई है उसीप्रकार सनत्कुमारसे लेकर शतार और सहस्रार तक कल्पवासी देवों में मिथ्यादृष्टि देवोंकी प्ररूपणा है ॥ ७० ॥ सूत्रमें 'जहा' इसप्रकार कहने पर 'तं जहा ' इसका अर्थ नहीं कहना चाहिये, किंतु यहां उपमारूप अर्थमें 'जहा' शब्दका ग्रहण करना चाहिये । इससे यह अभिप्राय हुआ कि जिसप्रकार सातवीं पृथिवीमें नारकियोंका प्रमाण कहा गया है उसीप्रकार सानत्कुमार आदि देवोंके प्रमाणका कथन करना चाहिये | अब आगे आचार्य परंपरा से आये हुए उपदेश के अनुसार विशेष प्ररूपणा करते हैं । वह इसप्रकार है सानत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्गमें जगश्रेणीका भागहार जगश्रेणीके नीचे ग्यारहवां वर्गमूल है। ब्रह्म और ब्रह्मोत्तर कल्पमें जगश्रेणीका भागहार जगश्रेणीका नौवां वर्गमूल है। लांच और कापिष्ठ कल्प में जगश्रेणीका भागहार जगश्रेणीका सातवां वर्गमूल है। शुक्र और महाशुक्र कल्पमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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