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________________ १, २, ४९.] दवपमाणाणुगमे मणुसर्गादपमाणपरूवर्ण [२६१ मणुसिणीसु सासणसम्माइटिप्पहुडि जाव अजोगिकेवलि त्ति दव्वपमाणेण केवडिया ? संखेज्जा ॥४९॥ मणुस्सोधे वुत्तसासणादीणं संखेजदिभागो सासणादीणं गुणपडिवण्णाणं पमाणं मणुसिणीसु हवदि । कुदो ? अप्पसत्थवेदोदएण सह पउरं सम्मइंसणलंभाभावादो । तं कधं जाणिजदे ? ' सव्वत्थोवा णवंसयवेदअसंजदसम्मादिट्ठिणो । इत्थिवेदअसंजदसम्माइट्ठिणो असंखेज्जगुणा । पुरिसवेदअसंजदसम्माइट्ठिणो असंखेज्जगुणा' इदि अप्पाबहुअसुत्तादो कारणस्स थोवत्तणं जाणिजदे। तदो सासणसम्माइट्ठिादीणं पि थोवत्तणं सिद्धं विशेपार्थ-किसी भी विवक्षित वर्गमें उसीके विभाग को जोड़कर उसका उसके उपरिम वर्गके उपरिम वर्गमें भाग देने पर उस विवक्षित वर्गके घनका तीन चतुर्थांश लब्ध आता है । तदनुसार पांचवें वर्गमें उसीका त्रिभाग जोड़कर सातवें वर्गमें भाग देने पर पांचवें वर्गके घनरूप मनुस्य राशिका तीन चतुर्थांश लब्ध आता है। यही मनुष्य योनिमतियों का प्रमाण है। इसमेंसे सासादन आदि तेरह गुणस्थानवी राशिका प्रमाण घटा देने पर मिथ्यादृष्टि स्त्रियोंका प्रमाण होता है. यह जो मलमें कहा है इससे प्रतीत होता है कि उपर्यक्त प्रमाण सिका भाववेदकी प्रधानतासे कहा गया है। यदि यह प्रमाण द्रव्यस्त्रियोंका होता तो मूलमें 'इसमेंसे सासादनादि तेरह गुणस्थानराशिका प्रमाण घटाने पर मिथ्यादृष्टि मनुष्य योनिमतियोंका प्रमाण होता है। ऐसा न कह कर केवल इतना ही कहा जाता कि इस प्रमाणमेंसे सासादनादि चार गुणस्थानवर्ती राशिका प्रमाण घटाने पर मिथ्यादृष्टि योनिमतियोंका प्रमाण होता है। परंतु गोम्मटसारकी टीकामें यह प्रमाण द्रव्यवेदकी अपेक्षा बतलाया है। ____मनुष्यनियोंमें सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानमें जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? संख्यात हैं ॥४९ ।। ___ सामान्य मनुष्योंमें सासादनसम्यग्दृष्टि आदि गुणस्थानप्रतिपन्न जीवोंकी जो संख्या कही गई है उसके संख्यातवें भाग मनुष्यनियोंमें सासादनसम्यग्दृष्टि आदि गुणस्थानप्रतिपन्न जीवोंका प्रमाण है, क्योंकि, अप्रशस्त वेदके उदयके साथ प्रचुर जीवोंको सम्यग्दर्शनका लाभ नहीं होता है। शंका-यह कैसे जाना जाता है ? समाधान-' नपुंसकवेदी असंयतसम्यग्दृष्टि जीव सबसे स्तोक हैं । स्त्रीवेदी असं. यतसम्यग्दृष्टि जीव उनसे असंख्यातगुणे हैं। और पुरुषवेदी असंयतसम्यग्दृष्टि उनसे असंख्यातगुणे हैं।' इस अल्पबहुत्वके प्रतिपादन करनेवाले सूत्रसे स्त्रीवेदियोंके अल्प होनेके कारणका स्तोकपना जाना जाता है । और इसीसे सासादनसम्यग्दृष्टि आदिकके भी स्तोकपना सिद्ध हो १ पर्याप्तमनुष्यराशेः त्रिचतुर्भागो मानुषणि द्रव्यत्रीणां परिमाणं भवति । गो. जी. १५९ टीका, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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