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________________ छक्खंडागमे जीवद्वाणं [ १, २, ३९. 1 भागाभागं वत्तइस्सामा । तिरिक्खरासिमणंत खंडे कदे तत्थ बहुखंडा एइंदियवियलिंदिया होंति । सेसं संखेज्जखंडे कदे तत्थ बहुखंडा पंचिदियतिरिक्खलद्धि अपजत्ता होंति । सेसं संखेज्जखंडे कए तत्थ बहुखंडा पंचिदियतिरिक्खपज्जत्तमिच्छादिट्ठी होंति । सेसमसंखेज्जखंडे कए तत्थ बहुखंडा पंचिदियतिरिक्खजोणिणीमिच्छाइट्ठी होंति । सेसमसंखेज्जखंडे कए तत्थ बहुखंडा पंचिदियतिरिक्खतिवेदअसंजदसम्माइद्विदव्वं होदि । सेसं संखेज्जखंडे कए तत्थ बहुखंडा पंचिदियतिरिक्खतिवेदसम्मामिच्छाइट्टिदव्वं होदि । सेसमसंखेज्जखंडे कए तत्थ बहुखंडा पंचिदियतिरिक्खतिवेदसासणसम्माइट्ठिदव्वं होदि । सेसे गखंडा संजदासंजदा होंति । २४० ] अप्पाबहुअं तिविहं सत्थाणं परत्थाणं सव्वपरत्थाणं चेदि । तत्थ सत्थाणे भण्णमाणे तिरिक्खमिच्छा इडीणं सत्थाणं णत्थि रासीदो ध्रुवरासिस्स बहुत्तुवलंभादो । सासणादणिं सत्याणमोघं । पंचिदियतिरिक्खमिच्छाहहीणं सत्थाणप्पा बहुगं बुच्चदे | सव्वत्थोवो पंचिदियतिरिक्खमिच्छाइद्विअवहार कालो । तस्सेव विक्खंभसूई असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? सगविक्खंभसूईए असंखेज्जदिभागो । को पडिभागो ? सगअवहारकालो । अब भागाभागको बतलाते हैं- तिर्यच राशिके अनन्त खंड करने पर उनमें से बहुखंडप्रमाण एकेन्द्रिय और विक्लेन्द्रिय जीव हैं। शेषके संख्यात खंड करने पर उनमें से बहुभाग पंचेन्द्रिय तिर्यच लब्ध्यपर्याप्तक जीव हैं। शेषके संख्यात खंड करने पर उनमें से बहुभाग पंचेन्द्रिय तिर्यच पर्याप्त मिथ्यादृष्टि जीव हैं। शेषके असंख्यात खंड करने पर उनमें से बहुभाग पंचेन्द्रिय तिर्यच योनिमती मिथ्यादृष्टि जीव हैं । शेषके असंख्यात खंड करने पर उनमेंसे बहुभाग पंचेन्द्रिय तिर्यंच तीन वेदवाले असंयतसम्यग्दृष्टियोंका द्रव्य है । शेषके संख्यात खंड करने पर उनमें से बहुभाग पंचेन्द्रिय तिर्यंच तीन वेदवाले सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका द्रव्य है । शेषके असंख्यात खंड करने पर उनमें से बहुभाग पंचेन्द्रिय तिर्यच तीन वेदवाले सासादनसम्यग्दृष्टियों का द्रव्य है । शेष एक खंडप्रमाण पंचेन्द्रिय तिर्यच तीन वेदवाले संयतासंयत है । अल्पबहुत्व तीन प्रकारका है, स्वस्थान अल्पबहुत्व, परस्थान अल्पबहुत्व और सर्वपरस्थान अल्पबहुत्व । उनमेंसे स्वस्थान अल्पबहुत्वका कथन करने पर तिर्यंच मिथ्यादृष्टियों का स्वस्थान अल्पबहुत्व नहीं पाया जाता है, क्योंकि, तिर्यच मिथ्यादृष्टि जीवराशि से ध्रुवराशिका प्रमाण बड़ा है । सासादनसम्यग्दृष्टि आदि जीवोंका स्वस्थान अल्पबहुत्व सामान्य प्ररूपणा के समान है। अब पंचेन्द्रिय तिर्यच मिथ्यादृष्टियोंका स्वस्थान अल्पबहुत्व बतलाते हैं - पंचेन्द्रिय तिर्यंच मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल सबसे थोड़ा है । उन्हीं पंचेन्द्रिय तिर्यच मिथ्यादृष्टिर्योकी विष्कंभसूची असंख्यातगुणी है । गुणकार क्या है ? अपनी विष्कंभसूचीका असंख्यातवां भाग गुणकार है । प्रतिभाग क्या है ? अपना अवहारकाल प्रतिभाग है । अथवा, ein Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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