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________________ १, २, ३९.] दव्वपमाणाणुगमे तिरिक्खगदिपमाणपख्वणं . [२१९ संखेज्जगुणो किमसंखेज्जगुणो किं संखेज्जगुणहीणो किमसंखेज्जगुणहीणो किं विसेसाहिओ विसेसहीणो वा त्ति णत्थि संपहियकाले उवएसो । पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्ता दव्वपमाणेण केवडिया, असंखेज्जा ॥ ३७॥ ___ असंखेज्जासंखेज्जाहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहिं अवहिरंति कालेण ॥ ३८ ॥ ____एदाणि दोण्णि वि सुत्ताणि सुगमाणि । किंतु एत्थ अपज्जत्ता इदि वुत्ते अपज्जत्तणामकम्मोदयपंचिंदियतिरिक्खा घेत्तव्वा । पज्जत्तणामकम्मस्स उदए अपजत्तो वि पज्जत्तो चेव, णोकम्मणिव्वत्तिअवेक्खाभावादो। खेत्तेण पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तेहि पदरमवहिरदि देवअवहारकालादो असंखेज्जगुणहीणेण कालेण ॥ ३९ ॥ पण्णद्विसहस्स-पंचसय-छत्तीसपदरंगुलमेत्तदेवअवहारकालमावलियाए असंखेअदिभाएण भागे हिदे पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तअवहारकालो होदि । अवसेसा खंडिदादिवियप्पा पंचिंदियतिरिक्खमिच्छाइट्ठीणं व भाणेदव्वा । है, या संख्यातगुणी हीन है, या असंख्यातगुणी हीन है, या विशेषाधिक है, या विशेष हीन है, इत्यादिरूपसे इस कालमें कोई उपदेश नहीं पाया जाता है। पंचेद्रिय तिर्यंच अपर्याप्त जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? असंख्यात हैं ॥ ३७॥ कालकी अपेक्षा पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्त जीव असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियोंके द्वारा अपहृत होते हैं ॥ ३८॥ __ये दोनों भी सूत्र सुगम हैं। किंतु यहां पर अपर्याप्त ऐसा कथन करने पर अपर्याप्त नामकर्मके उदयसे युक्त पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंका ग्रहण करना चाहिये । तथा जिसके पर्याप्त नामकर्मका उदय है वह (शरीर पर्याप्तिके पूर्ण होने तक) अपर्याप्त होता हुआ भी पर्याप्त ही है, क्योंकि, यहां पर नोकर्मकी निर्वृतिकी अपेक्षा नहीं है। क्षेत्रकी अपेक्षा पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तोंके द्वारा देवोंके अवहारकालसे असंख्यातगुणे हीन कालसे जगप्रतर अपहृत होता है ॥ ३९ ॥ ___ पेंसठ हजार पांचसौ छत्तीस प्रतरांगुलमात्र देवोंके अवहारकालमें आवलीके असंख्यातवें भागका भाग देने पर पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्त अवहारकाल होता है। अवशिष्ट खंडित आदि विकल्पोंका कथन पंचेन्द्रिय तिर्यंच मिथ्यादृष्टियोंके खंडित आदिके कथनके समान करना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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