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________________ २३८] छक्खंडागमे जीवाणं [ १, २, ३६. वत्तीए, तम्हा विसेसेण होदव्वं । तं विसेसं पुव्वाइरियाविरुद्धोवएसेण वत्तइस्सामो । तं जहा- पंचिंदियतिरिक्खपज्जत्तअसंजदसम्माइद्विअवहारकाले आवलियाए असंखेज्जदिभाएण गुणिदे पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीअसंजदसम्माइटिअवहारकालो होदि । तमावलियाए असंखेज्जदिभाएण गुणिदे पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीसम्मामिच्छाइट्ठिअवहारकालो होदि । तं संखेज्जरूवेहिं गुणिदे तत्थेव सासणसम्माइट्ठिअवहारकालो होदि । तमावलियाए असंखेज्जदिभाएण गुणिदे संजदासंजदअवहारकालो होदि । एदेहि अवहारकालेहि खंडिदादओ ओघभंगो । पंचिंदियतिरिक्खपज्जत्तेसु पुरिसवेदासंजदसम्माइद्विरासीदो तत्थेव इत्थिवेदासंजदसम्माइद्विरासी किमट्ठमसंखेज्जगुणहीणा ? पुरिसवेदादो सुट्ट अप्पसस्थित्थिवेदोदएण पउरं देसणमोहणीयखओवसमाभावादो। जदि एवं तो तत्थतणइत्थिवेदअसंजदसम्माइट्ठिरासीदो तत्तो अप्पसत्थतणणqसगवेदअसंजदसम्माइद्विरासिस्स असंखेज्जगुणहीणत्तं पसज्जदे ? भवदु णाम अविरुद्धत्तादो। पंचिंदियतिरिक्खपज्जत्ततिवेद. सम्मामिच्छाइद्विरासीदो पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीअसंजदसम्माइद्विरासी किं समो किं ....................... सकती है। इसलिये सामान्य प्ररूपणासे यह प्ररूपणा विशेष होना चाहिये। आगे उस विशेषको पूर्व आचार्योंके अविरुद्ध उपदेशके अनुसार बतलाते हैं। वह इसप्रकार हैपंचेन्द्रिय तिर्यच पर्याप्त असंयतसम्यग्दृष्टिसंबन्धी अवहारकालको आवलीके असंख्यातवें भागसे गणित करने पर पंचन्द्रिय तिर्यंच योनिमती असंयतसम्यग्दृष्टि अवहारकाल होता है। उसे आवलीके असंख्यातवें भागसे गुणित करने पर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती सम्यग्मिथ्यादृष्टि अवहारकाल होता है । उसे संख्यातसे गुणित करने पर वहीं पंचेन्द्रिय तिर्यच योनिमतियोंमें सासादनसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल होता है। उसे आवलीके असंख्यातवें भागसे गुणित करने पर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती संयतासंयत अवहारकाल होता है। इन अवहारकालोके द्वारा खंडित आदिकका कथन सामान्य तिर्यंचोंके खंडित आदिकके कथनके समान है। शंका-पंचेन्द्रिय तिर्यच पर्याप्तोंमें पुरुषवेदी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशिसे वहीं पर स्त्रीवेदी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशि असंख्यातगुणी हीन किस कारणसे है? । समाधान-पुरुषवेदकी अपेक्षा अप्रशस्त स्त्रीवेदके उदयके साथ प्रचुररूपसे दर्शनमोहनीयके क्षयोपशमका अभाव है। शंका-यदि ऐसा है तो उन्हीं पंचेन्द्रिय तिर्यचोंमें स्त्रीवेदी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशिसे स्त्रीवेदियोंसे भी अप्रशस्त नपुंसकवेदी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशिके असंख्यातगुणी हीनता प्राप्त हो जाती है ? समाधान-स्त्रीवेदियोंसे नपुंसकवेदियोंके असंख्यातगुणी हीनता प्राप्त होती है तो हो जाओ, क्योंकि, ऐसा स्वीकार कर लेने में कोई विरोध नहीं आता है। पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्त तीनों वेदवाली सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवराशिसे पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशि क्या समान है, या संख्यातगुणी है, या असंख्यातगुणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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