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________________ २३६ ] छक्खडागमे जीवट्ठाणं [१, २, ३५. मिच्छाइटिअवहारकालो आगच्छदि । एवमुवरि जाणिऊण वत्तव्यं । अट्ठरूवे वत्तइस्सामो । पदरंगुलस्स संखेज्जदिभाएण पदरंगुल उवरिमवग्गस्सु. वरिमवग्गं गुणेऊण घणंगुल उवरिमवग्गस्सुवरिमवग्गे भागे हिदे पंचिदियतिरिक्खजोणिणीमिच्छाइट्ठिअवहारकालो आगच्छदि। तं जहा- पदरंगुलउवरिमवग्गस्मुवरिमवग्गेण घणंगुलउवरिमवग्गस्सुवरिमवग्गे भागे हिदे पदरंगुलउपरिमवग्गो आगच्छदि । पुणो पदरंगुलस्स संखेज्जदिभागेण पदरंगुलउवरिमवग्गे भागे हिदे पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीमिच्छाइडिअवहारकालो आगच्छदि । तस्स भागहारस्स अद्धच्छेदणयमेत्ते रासिस्स अद्धच्छेदणए कदे वि पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीमिच्छाइहि अवहारकालो आगच्छदि । घणाघणे वत्तइस्सामो । पदरंगुलस्स संखेज्जदिभाएण पदरंगुल उवरिमवग्गस्सुपरिमवग्गं गुणेऊण तेण घणंगुल उवरिमवग्गस्स तव्वग्गवग्गं गुणेऊण घणाघणंगुलउवरिमवग्गस्सुवरिमवग्गे भागे हिदे पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीमिच्छाइट्ठिअवहारकालो आगच्छदि । तं जहा- घणंगुल उवरिमवग्गस्स तव्यग्गवग्गेण घणाघणंगुलउपरिमवग्गस्सु. परिमवग्गे भागे हिदे घणंगुलउवरिमवग्गस्सुवरिमवग्गो आगच्छदि। पुणो पदरंगुलपरिम ऊपर जानकर भी कथन करना चाहिये ।। अब अष्टरूपमें गृहीत उपरिम विकल्पको बतलाते हैं- प्रतरांगुलके संख्यातवें भागसे प्रतरांगुलके उपरिम वर्गके उपरिम वर्गको गुणित करके जो लब्ध आवे उसका घनांगुलके उपरिम वर्गके उपरिम वर्गमें भाग देने पर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती मिथ्यादृष्टि अवहारकाल आता है । उसका स्पष्टीकरण इसप्रकार है-प्रतरांगुलके उपरिम वर्गके उपरिम वर्गका घनांगुलके उपरिम वर्गके उपरिम वर्गमें भाग देने पर प्रतरांगुलका उपरिम वर्ग आता है। पुनः प्रतरांगुलके संख्यातवें भागसे प्रतरांगुलके उपरिम वर्गके भाजित करने पर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती मिथ्याटष्टि अवहारकाल आता है। उक्त भागहारके जितने अर्धच्छेद हों उतनीयार उक्त भज्यमान राशिके अर्धच्छेद करने पर भी पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती मिथ्यादृष्टि अवहारकाल आता है। ___अब घनाघनमें गृहीत उपरिम विकल्पको बतलाते हैं--प्रतरांगुलके संख्यातवें भागसे प्रतरांगुलके उपरिम वर्गके उपरिम वर्गको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे घनांगुलके उपरिम वर्गके वर्गके वर्गको गुणित करके जो लब्ध आवे उसका घनाघनांगुलके उपरिम वर्गके उपरिम वर्गमें भाग देने पर पंचेन्द्रिय तिर्यच योनिमती मिथ्यादृष्टि अवहारकाल आता है। उसका स्पष्टीकरण इसप्रकार है- घनांगुलके उपरिम वर्गके वर्गके वर्गका घनाघनांगुलके उपरिम वर्गके उपरिम वर्गमें भाग देने पर घनांगुलके उपरिम वर्गका उपरिम वर्ग आता है। पुनः १ प्रतिपु ' तत्तस्स वगं' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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