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________________ १, २, ३५.] दव्वपमाणाणुगमे तिरिक्खगदिपमाणपरूवणं [२३५ अवहारकालो आगच्छदि । अहवरूवणा गदा । घणाघणे वत्तइस्सामो। पदरंगुलस्स संखेजदिभाएण पदरंगुलं गुणेऊण तेण पदरंगुलघणस्स पढमवग्गमूलं गुणिय घणाघणंगुले भागे हिदे पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीमिच्छाइडिअवहारकालो आगच्छदि । तं जहाघणंगुलेण घणाघणंगुले भागे हिदे घणंगुलउवरिमवग्गो आगच्छदि। पुणो पदरंगुलेण घणंगुलउवरिमवग्गे भागे हिदे पदरंगुलुवरिमवग्गो आगच्छदि । पुणो पदरंगुलस्स संखेजदिभागेण पदरंगुलुवरिमवग्गे भागे हिदे पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीमिच्छाइटिअव: हारकालो आगच्छदि। हेट्ठिमवियप्पो गदो। ___ गहिदादिभेएण उवरिमवियप्पो तिविहो । तत्थ वेरूवे गहिदं वत्तइस्सामो । पदरंगुलस्स संखेजदिभाएण पदरंगुलुवरिमवग्गे भागे हिदे पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीमिच्छाइटिअवहारकालो आगच्छदि । तस्स भागहारस्स अद्धच्छेदणयमेते रासिस्स अद्धच्छेदणए कदे वि पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीमिच्छाइटिअवहारकालो होदि । एसो मज्झिमवियप्पो उवरिमवियप्पणिण्णयजणणटुं संभाविदो। पदरंगुलस्स संखेजदिभाएण पदरंगुलउवरिमवग्गं गुणेऊण तस्सुवरिमवग्गे भागे हिदे पंचिंदियतिरिक्खजोणिणी योनिमती मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल आता है। इसप्रकार अष्टरूप प्ररूपणा समाप्त हुई। ___ अब घनाघनमें अधस्तन विकल्पको बतलाते हैं-प्रतरांगुलके संख्यातवें भागसे प्रतरांगुलको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे प्रतरांगुलके घनके प्रथम वर्गमूलको गुणित करके जो लब्ध आवे उसका घनाघनांगुलमें भाग देने पर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल आता है । उसका स्पष्टीकरण इसप्रकार है- धनांगुलसे घना घनांगुलके भाजित करने पर घनांगुलका उपरिम वर्ग आता है। पुनः प्रतरांगुलसे घनांगुलके उपरिम वर्गके भाजित करने पर प्रतरांगुलका उपरिम वर्ग आता है। पुनः प्रतरांगुलके संख्यातवें भागसे प्रतरांगुलके उपरिम वर्गके भाजित करने पर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल आता है । इसप्रकार अधस्तन विकल्प समाप्त हुआ। गृहीत आदिके भेदसे उपरिम विकल्प तीन प्रकारका है। उनमेंसे द्विरूपमें गृहीत उपरिम विकल्पको बतलाते हैं-प्रतरांगुलके संख्यातवें भागसे प्रतरांगुलके उपरिम वर्गके भाजित करने पर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल आता है। उक्त भागहारके जितने अर्धच्छेद हो उतनीवार उक्त भज्यमान राशिके अर्धच्छेद करने पर भी पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती मिथ्यादृष्टि अवहारकाल आता है। यह मध्यम विकल्प है जो उपरिम विकल्पका निर्णय करानेके लिये बतलाया गया है। प्रतरांगुलके संख्यातवें भागसे प्रतरांगुलके उपरिम वर्गको गुणित करके जो लब्ध आवे उसका प्रतरांगुलके उपरिम वर्गके उपरिम वर्गमें भाग देने पर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती मिथ्यादृष्टि अवहारकाल आता है। इसीप्रकार १ प्रतिषु संभवाविदो' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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