________________
२३१] छक्खंडागमे जीवठाणं
[१, २, ३५. आगच्छति । एवं कमेण गंतूण पदरंगुलस्स संखेजदिभागेण पदरंगुलुवरिमवग्गे भागे हिदे संखेज्जाणि पदरंगुलाणि आगच्छति। पमाण-कारणाणि गदाणि । तस्स का णिरुत्ती? पदरंगुलस्स संखेजदिभागेण पदरंगुले भागे हिदे लद्धम्हि जत्तियाणि रूवाणि तत्तियाणि पदरंगुलाणि हवंति । णिरुत्ती गदा।
वियप्पो दुविहो, हेट्ठिमवियप्पो उवरिमवियप्पो चेदि । तत्थ हेट्ठिमविर्यप्पं वत्तइस्सामो। पदरंगुलस्स संखेजदिभागेण पदरंगुले भागे हिदे लद्वेण तं चेव गुणिदे पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीमिच्छाइटिअवहारकालो होदि । अहवा वेरूवे हेद्विमवियप्पो णत्थि, विहज्जमाणरासीदो हेट्ठिमपदरंगुलं पेक्खिय पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीमिच्छाइटिअवहारकालस्स बहुत्तुवलंभादो । ण च थोवरासिमवहरिय तत्तो बहुवरासी उप्पादेदुं सक्किजदे, विरोहा। अट्ठरूवे वत्तइस्सामो। पदरंगुलस्स संखेजदिमागेण पदरंगुलं गुणेऊण पदरंगुलघणे भागे हिदे पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीमिच्छाइडिअवहारकालो होदि । तं जहापदरंगुलेण पदरंगुलघणे भागे हिदे पदरंगुल उवरिमवग्गो आगच्छदि । पुणो पदरंगुलस्स संखेजदिमागेण पदरंगुलउवरिमवग्गे भागे हिदे पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीमिच्छाइटिप्रतरांगुलके संख्यातवें भागका प्रतरांगुलके उपरिम वर्गमें भाग देने पर संख्यात प्रतरांगुल लब्ध आते हैं । इसप्रकार प्रमाण और कारणका वर्णन समाप्त हुआ।
शंका- इसकी क्या निरुक्ति है ?
समाधान-प्रतरांगुलके संख्यातवें भागसे प्रतरांगुलके भाजित करने पर लब्धमें जो प्रमाण आवे उतने प्रतरांगुल योनिमती मिथ्यादृष्टि अवहारकालमें होते हैं। इसप्रकार निरुक्तिका कथन समाप्त हुआ।
विकल्प दो प्रकारका है, अधस्तन विकल्प और उपरिम विकल्प । उनमेंसे अधस्तन विकल्पको बतलाते हैं-प्रतरांगुलके संख्यातवें भागसे प्रतरांगुलके भाजित करने पर जो लब्ध आवे उससे उसीके अर्थात् प्रतरांगुलके गुणित कर देने पर पंचेन्द्रिय तिर्यच योनिमती मिथ्याष्टियोंका अवहारकाल होता है । अथवा, यहां द्विरूपधारामें अधस्तन विकल्प नहीं बनता है, क्योंकि, भज्यमान राशिकी अपेक्षा अधस्तन प्रतरांगुलको देखते हुए पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल बहुत बड़ा है। कुछ स्तोक राशिको अपहृत करके उससे बड़ी राशि नहीं उत्पन्न की जा सकती है, क्योंकि, ऐसा मानने में विरोध आता है।
___ अब अष्टरूपमें अधस्तन विकल्प बतलाते हैं-प्रतरांगुलके संख्यातवें भागसे प्रतरां. गुलको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे प्रतरांगुलके घनके भाजित करने पर पंचेन्द्रिय तिर्यच योनिमती मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल होता है। उसका स्पष्टीकरण इसप्रकार हैप्रतरांगुलसे प्रतरांगुलके घनके भाजित करने पर प्रतरांगुलका उपरिम वर्ग आता है। पुनः प्रतरांगुलके संख्यातवें भागसे प्रतरांगुलके उपरिम वर्गके भाजित करने पर पंचेन्द्रिय तिर्यच
१ प्रतिषु · विरोहाभावादो' इति पाठ ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org