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________________ १, २, ३५.] दव्यपमाणाणुगमे तिरिक्खगदिपमाणपख्वणं [२३३ संखेजदिभागमेत्तखंडे कए तत्थेयखंडं पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीमिच्छाइडिअवहारकालो होदि। खंडिदं गदं । पदरंगुलस्स संखेजदिभाएण पदरंगुलुवरिमवग्गे भागे हिदे पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीमिच्छाइद्विअवहारकालो होदि । भाजिदं गदं । पदरंगुलस्ससंखेजदिभागं विरलेऊण एकेकस्स रूवस्स पदरंगुलस्सुवरिमवग्गं समखंडं करिय दिण्णे तत्थ एगखंडं पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीमिच्छाइटिअवहारकालो होदि । विरलिदं गदं । पदरंगुलस्स संखेजदिभागं सलागभूदं ठवेऊण पदरंगुलउवरिमवग्गादो पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीमिच्छाइटिअवहारकालपमाणमवणिय सलागादो एगरूवमवणेयव्वं । एवं पुणो पुणो अवहिरिज्जमाणे पदरंगुलउवरिमवग्गो सलागाओ च जुगवं णिट्ठिदाओ । तत्थ आदीए अंते मज्झे वा एयवारमवहिदपमाणं पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीमिच्छाइट्ठिअवहार कालो होदि । अवहिदं गदं । तस्स पमाणं पदरंगुल उवरिमवग्गस्स असंखेजदिभागो संखेज्जाणि पदरंगुलाणि । तं जहा- पदरंगुलेण पदरंगुल उवरिमवग्गे भागे हिदे पदरंगुलमागच्छदि । पदरंगुलस्स दुभाएण पदरंगुलउपरिमवग्गे भागे हिदे दोण्णि पदरंगुलाणि आगच्छति । पदरंगुलस्स तिभाएण पदरंगुल उवरिमवग्गे भागे हिदे तिण्णि पदरंगुलाणि पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल होता है। इसप्रकार खंडितका वर्णन समाप्त हुआ। प्रतरांगुलके संख्यातवें भागसे प्रतरांगुलके उपरिम वर्गके भाजित करने पर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती मिथ्याहियोंका अवहारकाल होता है। इसप्रकार भाजितका वर्णन समाप्त हुआ। प्रतरांगुलके संख्यातवें भागको विरलित करके और उस विरलित राशिके प्रत्येक एकके प्रति प्रतरांगुलके उपरिम वर्गको समान खंड करके देयरूपसे दे देने पर वहां एक खंडमात्र पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल होता है । इसप्रकार विरलितका वर्णन समाप्त हुआ। प्रतरांगुलके संख्यातवें भागको शलाकारूप स्थापित करके प्रतरांगुलके उपरिम वर्गमेंसे पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल घटा देना चाहिये। एकवार घटाया, इसलिये शलाकाराशिसे एक कम कर देना चाहिये । इसप्रकार प्रतरांगुलके उपरिम वर्गमेसे पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती मिथ्यादृष्टियोका अवहारकाल और शलाकाराशिमेंसे एक पुनः पुनः घटाते जाने पर प्रतरांगुलका उपरिम वर्ग और शलाकाएं एकसाथ समाप्त हो जाती हैं। वहां आदिमें, अन्तमें अथवा मध्यमें एकवार जितना प्रमाण घटाया जाय उतना पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल होता है । इसप्रकार अपहृतका वर्णन समाप्त हुआ। उस पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती मिथ्यादृष्टि अवहारकालका प्रमाण प्रतरांगुलके उपरिम वर्गका असंख्यातवां भाग है जो संख्यात प्रतरांगुलप्रमाण है। उसका स्पष्टीकरण इसप्रकार है- प्रतरांगुलका प्रतरांगुलके उपरिम वर्गमें भाग देने पर एक प्रतरांगुल आता है। प्रतरांगुलके दूसरे भागका प्रतरांगुलके उपरिम वर्गमें भाग देने पर दो प्रतरांगुल लब्ध आते हैं। प्रतरांगुलके तीसरे भागका प्रतरांगुलके उपरिम वर्गमें भाग देने पर तीन प्रतरांगुल लब्ध आते हैं। इसीप्रकार क्रमसे आगे जाकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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