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________________ १, २, २६.] दव्वपमाणाणुगमे तिरिक्खगदिपमाणपरूवणं [२१५ संपहि अणंतरासीसु दव्वपरूवणादो कालपरूवणा सुहुमा भवदु णाम, तत्थ अणताणतस्स पुन्वमणुवलद्धस्स उवलद्धीदो अदीदकालादो अणंतगुणतुवलंभादो च । ण कालपरूवणादो खेत्तपरूवणा सुहुमा, अधिगोवलद्धीए अणिमित्तत्तादो। तदो परूवणपरिवाडी ण घडदे इदि ? ण, अणंतलोगमेत्ताणं एगलोगम्मि अवगासो अस्थि त्ति विसेसुवलंभादो कालादो खेत्तस्स सुहुमत्तं पडि विरोहाभावादो । (पंचिदियतिरिक्खमिच्छाइट्ठी दव्वपमाणेण केवडिया, असंखेज्जा ॥ २५ ॥) एदस्स सुत्तस्स णिरओघदव्यपरूवणासुत्तस्सेव वक्खाणं कायव्वं । एवं कए दवपरूवणा गदा भवदि । (असंखेज्जासंखेज्जाहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि अवहिरति कालेण ॥ २६ ॥) शंका- अनन्तप्रमाण राशियोंमें द्रव्यप्ररूपणासे कालप्ररूपणा सूक्ष्म रही भाभो, क्योंकि, कालप्ररूपणामें पहले नहीं उपलब्ध हुए अनन्तानन्तकी उपलब्धि पाई जाती है, और अतीतकालसे अनन्तगुणत्व पाया जाता है। परंतु कालप्ररूपणाले क्षेत्रप्ररूपणा सूक्ष्म नहीं हो सकती है, क्योंकि, क्षेत्रप्ररूपणामें अधिक उपलब्धिका कोई निमित्त नहीं पाया जाता है। इसलिये द्रव्यप्ररूपणाके अनन्तर कालप्ररूपणा और कालप्ररूपणाके अनन्तर क्षेत्रप्ररूपणा, इसप्रकार प्ररूपणाकी परिपाटी नहीं बन सकती है? __ समाधान-नहीं, अनन्त लोकमात्र द्रव्योंका एक लोकमें अवकाश पाया जाता है, इसप्रकारकी विशेषताकी उपलब्धि होनेसे कालकी अपेक्षा क्षेत्र सूक्ष्म है, इसमें कोई विरोध नहीं आता है। __ पंचेन्द्रिय तियंच मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? असंख्यात हैं ॥ २५॥ ___ सामान्य नारकियोंके द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा प्ररूपण करनेवाले सूत्रके व्याख्यानके समान ही इस सूत्रका व्याख्यान करना चाहिये (देखो सूत्र १५)। इसप्रकार व्याख्यान करने पर द्रव्यप्रमाणकी प्ररूपणा समाप्त होती है। कालकी अपेक्षा पंचेन्द्रिय तिर्यंच मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियोंके द्वारा अपहृत होते हैं ॥ २६ ॥ १ संसारी पंचक्खा तप्पुण्णा तिगदिहीणया कमसो। सामण्णा पंचिंदी पंचिंदियपुण्णतेरिक्खा ॥ गो.बी.१५५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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