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छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, २, २४.
हाणुववत्तदो । तदो पज्जवडियणए अवलंबिज्जमाणे ओघपरूवणादो तिरिक्खगदिपरूवणाए णाणत्तं वत्तइस्सामो । सव्वजीवरासिस्सुवरि सगुणपडिवण्णसिद्धतिगदिरासि पक्खिविय पुणो तेसिं चेव वग्गं तिरिक्खमिच्छाइडिरासिभजिदं च पक्खित्ते तिरिक्खामिच्छाsahi वरासी होदि । एसो मिच्छाइट्ठिपरूवणम्हि विसेसो ? गुणपडिवण्णपरूवणाए विसेसं वत्तस्सामा । तं जहा - देवसासणसम्म इडिअवहारकाले आवलियाए असंखेज्जदिभार्गेण गुणिदे तिरिक्खअसजद सम्माइडिअवहारकालो होदि । सो आवलियाए असंखेजदिभागेण गुणिदे तिरिक्खसम्मामिच्छाइट्ठि अवहारकालो होदि । सो संखेज्जरूवेहि गुणिदे सासणसम्माविहार कालो हो । सो आवलियाए असंखेजदिभागेण गुणिदे तिरिक्खसंजदासंजदअवहार कालो होदि । एदेहि अवहारकालेहि पलिदोवमे भागे हिदे तिरिक्खगदिगुणपडिवण्णाणं रासीओ हवंति' । एसो गुणपडिवण्णपरूवणाए विसेसो, णत्थि अण्णहि कहि वि ।
बन सकता है । अतः पर्यायार्थिक नयका अवलम्बन करने पर ओघ प्ररूपणासे तिर्यच गतिकी प्ररूपणा में भेद है । आगे इसी बात को बतलाते हैं
संपूर्ण जीवराशि गुणस्थानप्रतिपन्न तीन गतिसंबन्धी जीवराशि और सिद्धराशिको मिलाकर पुनः गुणस्थानप्रतिपन्न तीन गतिसंबन्धी जीवराशि और सिद्धराशिके वर्गको तिर्यच मिथ्यादृष्टि जीवराशि से भाजित करके जो लब्ध आवे उसे भी पूर्वोक्त राशिमें मिला देने पर तिर्यच मिथ्यादृष्टियों की ध्रुवराशि होती है । तिर्यच मिथ्यादृष्टियों की प्ररूपणा में इतना विशेष है ।
विशेषार्थ - यहां पर ध्रुवराशिरूपसे जो तिर्यच मिथ्यादृष्टि जीवराशिके उत्पन्न करने के लिये भागहार उत्पन्न करके बतलाया है, इसका भाग संपूर्ण जीवराशिके उपरिम वर्गमें देने से तिथंच मिध्यादृष्टि जीवराशिका प्रमाण आता है ।
अब आगे गुणस्थानप्रतिपन्न जीवोंकी प्ररूपणामें विशेषताको बतलाते हैं । वह इसप्रकार है— देव सासादन सम्यग्दृष्टियों के अवहारकालको आवलकेि असंख्यातवें भाग गुणित करने पर तिर्यच असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका अवहारकाल होता है । तिर्यच असंयतसम्यग्दृष्टियों के अवहारकालको आवलीके असंख्यातवें भागसे गुणित करने पर तिर्यच सम्यग्मिथ्यादृष्टियों का अवहारकाल होता है । तिर्यच सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंके अवहारकालको संख्यातसे गुणित करने पर तिर्यच सासादनसम्यग्दृष्टियों का अवहारकाल होता है । तिर्यंच सासादनसम्यग्दृष्टियोंके अवहारकालको आवलीके असंख्यातवें भागसे गुणित करने पर तिर्यच संयतासंयतों का अवहारकाल होता है । इन अवहारकालोंसे पल्योपमके भाजित करने पर गुणस्थानप्रतिपन्न तिर्यचोंकी राशियां होती हैं । यही गुणस्थानप्रतिपन्न प्ररूपणाकी विशेषता | अन्य कथनमें कहीं भी कोई विशेषता नहीं है ।
१ प्रतिषु ' हवदि ' इति पाठः ।
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