________________
२१० ]
छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, २, २३.
असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? सेढी । सासणसम्माइट्ठि सम्मामिच्छाइट्ठि-असं जदसम्माइणमोघसत्थाणभंगो | तदियादि जाव सत्तमपुढवित्ति एवं चैव सत्थाणप्पा बहुगं वत्तव्वं । णवरि अप्पप्पणी अवहारकाले जाणिऊण भाणिदव्वं ।
परत्थाणप्पाबहुगं वत्तइस्सामा । सव्वत्थोवो असंजदसम्माइट्ठिअवहारकालो । एवं जाव पलिदोवमो त्ति दव्वं । पलिदोवमादो उवरि सामण्णणेरइयमिच्छाइद्विविक्खभसूई असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? विक्खंभसूईए असंखेज्जदिभागो । को पडिभागो ? पलिदोवमं । अहवा सूचिअंगुलस्स असंखेजदिभागो असंखेज्जाणि सूचिअंगुलपढमवग्गमूलाणि । को पडिभागो ? पलिदोवमगुणिदसूइअंगुलविदियवग्गमूलं । उवरि सत्थाणभंगो । एवं चैव पढमाए पुढवीए । विदियाए पुढवीए सव्वत्थोवो असंजदसम्माइडिअवहारकालो | एवं जाव पलिदोवमो त्ति णेदव्वो । तदो मिच्छाइट्ठिअवहारकालो असंखे जगुणो । को गुणगारो ? वारसवग्गमूलस्स असंखेज्जदिभागो । को पडिभागो ? पलिदोषमं । उवरि सत्थाणभंगो । एवं तदियादि जाव सत्तमपुढवित्ति परत्थाणप्पाबहुगं वतव्वं । णवरि
क्या है ? जगश्रेणी गुणकार है । दूसरी पृथिवी के सासादन सम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टियोंका स्वस्थान अल्पबहुत्व सामान्य स्वस्थान अल्पबहुत्वके समान है । तीसरी पृथिवी से लेकर सातवीं पृथिवी तक स्वस्थान अल्पवद्दुत्वका कथन इसीप्रकार करना चाहिये । विशेष यह है कि प्रत्येक पृथिवीका स्वस्थान अल्पबहुत्व कहते समय अपने अपने अवहारकालको जानकर उसका कथन करना चाहिये ।
अब परस्थान अल्पबहुत्वको बतलाते हैं- असंयतसम्यग्दृष्टि अवहारकाल सबसे स्तोक है। उससे सम्यग्मिथ्यादृष्टिका, उससे सासादनसम्यग्दृष्टिका अवहारकाल, इसप्रकार अल्पबहुत्व कहते हुए पल्योपम तक ले जाना चाहिये । पल्योपमके ऊपर सामान्य नारक मिथ्यादृष्टि विष्कंभसूची असंख्यातगुणी है । गुणकार क्या है ? विष्कंभसूचीका असंख्यातवां भाग गुणकार है । प्रतिभाग क्या है ? पल्योपम प्रतिभाग है । अथवा, सूच्यंगुलका असंख्यातवां भाग गुणकार है जो सूच्यंगुलके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है । प्रतिभाग क्या है ? पल्योपमसे सूच्यंगुलके द्वितीय वर्गमूलके गुणित करने पर जो लब्ध आवे उतना प्रतिभाग है । इस विष्कंभसूचीके ऊपर परस्थान अल्पबहुत्व स्वस्थान अल्पबहुत्वके समान जानना चाहिये । इसीप्रकार पहली पृथिवीमें परस्थान अल्पबहुत्वका कथन करना चाहिये ।
दूसरी पृथिवीमें असंयत सम्यग्दृष्टिका अवहारकाल सबसे स्तोक है । इसीप्रकार उत्तरोत्तर अल्पबहुत्व कहते हुए पल्योपमतक ले जाना चाहिये । पल्योपमसे दूसरी पृथिवीके मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? जगश्रेणीके बारहवें वर्गमूलका असंख्यातवां भाग गुणकार है । प्रतिभाग क्या है ? पल्योपम प्रतिभाग है । इसके ऊपर अल्पबहुत्व स्वस्थान अल्पबहुत्वके समान जानना चाहिये । इसीप्रकार तीसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवीतक परस्थान अल्पबहुत्वका कथन करना चाहिये । इतना
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org