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________________ १, २, २३.] दव्वपमाणाणुगमे णिरयगदिअप्पाबहुगपरूवणं [२०९ सूची। अहवा सेढीए असंखेजदिभागो, असंखेज्जाणि सेढिपढमवग्गमूलाणि । को पडिभागो ? सगविक्खभसूचीवग्गो घणंगुलपढमवग्गमूलं वा । सेढी असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? सगविक्खंभसूई । दबमसंखेज्जगुणं । को गुणगारो ? विक्खंभसूई। पदरमसंखेज्जगुणं । को गुणगारो ? अवहारकालो। लोगो असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? सेढी। सासणसम्माइटि-सम्मामिच्छाइट्ठि-असंजदसम्माइट्ठीणमोघसस्थाणभंगो । एवं चेव पढमाए पुढवीए । विदियाए पुढवीए सव्वत्थोवो मिच्छाइट्ठिअवहारकालो। तस्सेव दव्वमसंखेज्जगुणं । को गुणगारो ? सगदव्वस्स असंखेजदिभागो। को पडिभागो ? सग. अवहारकालो। अहवा सेढीए असंखेजदिभागो असंखेज्जाणि सेढिपढमवग्गमूलाणि । को पडिभागो ? सगअवहारकालवग्गो सेढिएक्कारसवग्गमूलं वा । सेढी असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? सेढिवारसवग्गमूलं । पदरो असंखेज्जगुणो। को गुणगारो ? सेढी । लोगो क्या है ? अपने अवहारकालका असंख्यातवां भाग है। प्रतिभाग क्या है ? अपनी विष्कंभसूची प्रतिभाग है। अथवा, जगश्रेणीका असंख्यातवां भाग गुणकार है जो जगश्रेणीके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है। प्रतिभाग क्या है ? अपनी विष्कंभसूचीका वर्ग प्रतिभाग है । अथवा, घनांगुलका प्रथम वर्गमूल प्रतिभाग है। सामान्य नारक मिथ्यादृष्टि अवहारकालसे जगश्रेणी असंख्यातगुणी है। गुणकार क्या है ? अपनी विष्कंभसूची गुणकार है। जगश्रेणीसे सामान्य नारक मिथ्यादृष्टि द्रव्य असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? अपनी विष्कभसूची गुणकार है। सामान्य नारक मिथ्यादृष्टि द्रव्यसे जगप्रतर असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? सामान्य नारक मिथ्यादृष्टि अवहारकाल गुणकार है। जगप्रतरसे घनलोक असंख्यातगुणा है ? गुणकार क्या है ? जगश्रेणी गुणकार है। सामान्य नारक सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्य. ग्मिथ्याष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका स्वस्थान अल्पबहुत्व सामान्य स्वस्थान अल्पबहत्वक समान जानना चाहिये । इसीप्रकार पहली पृथिवीमें स्वस्थान अल्पबहुत्व है। दूसरी पृथिवीमें मिथ्यादृष्टि अवहारकाल सबसे स्तोक है। दूसरी पृथिवीके मिथ्यादृष्टि जीवोंका प्रमाण अवहारकालसे असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? अपने द्रव्यका असंख्यातवां भाग गुणकार है। प्रतिभाग क्या है ? अपना अवहारकाल प्रतिभाग है। अथवा, जगश्रेणीका असंख्यातवां भाग गुणकार है जो जगश्रेणीके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है। प्रतिभाग क्या है? अपने अवहारकालका (बारहवें वर्गमूलका) वर्ग अथवा जगश्रेणीका ग्यारहवां वर्गमूल प्रतिभाग है। दूसरी पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यसे जगश्रेणी असंख्यातगुणी है। गुणकार क्या है? जगश्रेणीका बारहवां वर्गमूल गुणकार है । जगश्रेणीसे जगप्रतर असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? जगश्रेणी गुणकार है । जगप्रतरसे घनलोक असंख्यातगुणा है। गुणकार १ प्रतिषु । पढम० ' (अ), 'पढम ' (आ.), 'पढम ' (क.) इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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