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________________ २०२ ] छक्खंडागमे जीवद्वाणं [ १, २, २२. वग्गमूलेण एकारसवग्गमूलं गुणिय तदियपुढविमिच्छाइडिदव्य म्हि गुणिदे विदियपुढवि मिच्छाइट्ठिदव्वं होदि । तस्स गुणगारस्स अद्धच्छेदणयमेत्तवारं तदियपुढविमिच्छाइदिव्वं दुगुणिदे' विदियपुढविमिच्छाइट्ठिदव्वं होदि । अहवा गुणगारद्वच्छेदणय सलागाओ विरलिय विगं करिय अण्णोष्णन्मत्थरासिणा तदिय पुढविमिच्छाइदिव्वम्हि गुणिदे विदिय पुढविमिच्छाइट्ठिदव्वं होदि । जहा तीहि पयारेहि तदियपुढविदव्वादो विदियपुढविदव्वमुप्पादं तहा सेसचउपुढविदव्बेर्हितो तीहि तीहि पयारेहि विदिय पुढविदन्त्रमुप्पादेदव्वं । एवमुप्पादिदे पण्णारस भंगा लद्धा भवंति । मिथ्यादृष्टि द्रव्यप्रमाणसे उत्पन्न करते हैं- जगश्रेणी के बारहवें वर्गमूलसे जगश्रेणी के ग्यारहवें वर्गमूलको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे तीसरी पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यके गुणित करने पर दूसरी पृथिवीके मिध्यादृष्टि द्रव्यका प्रमाण होता है । अथवा, उक्त गुणकारके (बारहवें वर्गमूल से ग्यारहवें वर्गमूलको गुणा करनेसे जो लब्ध आया उसके ) जितने अर्धच्छेद हों उतनीवार तीसरी पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यके द्विगुणित करने पर भी दूसरी पृथिवीके मिध्यादृष्टि द्रव्यका प्रमाण होता है । अथवा, उक्त गुणकारकी अर्धच्छेद शलाकाओंका विरलन करके और उनको दो रूप करके परस्पर गुणा करनेसे जो राशि उत्पन्न हो उससे तीसरी पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यके गुणित कर देने पर भी दूसरी पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यका प्रमाण होता है । यहां जिसप्रकार उक्त तीन प्रकारसे तीसरी पृथिवीके द्रव्य से दूसरी पृथिवीका द्रव्य उत्पन्न किया है, उसीप्रकार चौथी आदि शेष चार पृथिवियोंके द्रव्यसे उक्त तीन तीन प्रकारसे दूसरी पृथिवीका द्रव्य उत्पन्न कर लेना चाहिये । इसप्रकार उत्पन्न करने पर पंद्रह भंग प्राप्त होते हैं । विशेषार्थ - चौथी पृथिवीकी अपेक्षा दूसरी पृथिवीका द्रव्य उत्पन्न करते समय जगश्रेणीके नौवें वर्गमूलसे बारहवें वर्गमूलतक चार वर्गमूलों के परस्पर गुणा करनेसे जो राशि उत्पन्न हो उससे चौथी पृथिवीके द्रव्यको गुणित करने पर दूसरी पृथिवीका द्रव्य आता है। पांचवी पृथिवीकी अपेक्षा जगश्रेणीके सातवें वर्गमूलसे लेकर बारहवें वर्गमूलतक छह वर्गमूलों के परस्पर गुणा करनेसे जो राशि उत्पन्न हो उससे पांचवी पृथिवीके द्रव्यको गुणित करने पर दूसरी पृथिवीका द्रव्य आता है । छठी पृथिवीकी अपेक्षा जगश्रेणीके चौथे वर्गमूलसे लेकर बारहवें वर्गमूलतक नौ वर्गमूलोंके परस्पर गुणा करनेसे जो राशि उत्पन्न हो उससे छठी पृथिवीके द्रव्यको गुणित करने पर दूसरी पृथिवीका द्रव्य आता है। सातवीं पृथिवीकी अपेक्षा जगश्रेणी के तीसरे वर्गमूलसे लेकर बारहवें वर्गमूलतक दश वर्गमूलोंके परस्पर गुणा करनेसे जो राशि उत्पन्न हो उससे सातवीं पृथिवीके द्रव्यके गुणित करने पर दूसरी पृथिवीका द्रव्य आता है । गुणकार राशिके अर्धच्छेदों का विरलनादि करते समय १ क प्रतौ ' गुणिदे ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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