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१, २, २२.] दव्वपमाणाणुगमे णिरयगदिपमाणपरूवणं
[२०३ संपहि पढमपुढविमिच्छाइदिव्वादो विदियपुढविमिच्छाइढिदव्वस्स उप्पादणविहाणं वुच्चदे- पढमपुढविविक्खंभसूचिगुणिदसेढिवारसवग्गमूलेण पढमपुढविमिच्छाइटिदव्वम्हि भागे हिदे विदियपुढविमिच्छाइहिदव्यमागच्छदि । तस्स भागहारस्स अद्धच्छेदणयमेत्ते पढमपुढविदव्वस्स अद्धच्छेदणए कदे वि विदियपुढविमिच्छाइट्ठिदव्वमागच्छदि । सेढिवारसवग्गमूलस्स अद्धच्छेदणाओ पढमपुढविविक्खंभसूचीअद्धच्छेदणयसहिदाओ विरालय विगं करिय अण्णोण्णब्भत्थरासिणा पढमपुढविमिच्छाइद्विदव्वम्हि भागे हिदे विदियपुढविमिच्छाइट्ठिदव्वमागच्छदि । एदे तिण्णि भंगा पुबिल्लपण्णारसभंगेसु पक्खित्ते विदियपुढवीए अट्ठारस भंगा हवंति । एवं सव्वासिं पुढवीणं पत्तेगं पत्तेगं अट्ठारस भंगा उप्पाएदव्या । सव्वभंगसमासो सदं छव्वीसुत्तरं ।
भी जहां जितने वर्गमूलोंका परस्पर गुणा करके जो राशि लाई गई हो उसी राशिके अर्धच्छेदोंका विरलन करके और उस विरलित राशिको दोरूप करके परस्पर गुणा करनेसे जो लब्ध आवे उससे उस उस पृथिवीके द्रव्यको गुणित करना चाहिये। अथवा, इसी क्रमसे अर्धच्छेद लाकर उतनीवार उस उस पृथिवीके द्रव्यको द्विगुणित करना चाहिये । इसप्रकार करनेसे दूसरी पृथिवीके द्रव्यका प्रमाण आता है।
अब पहली पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यसे दूसरी पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यके उत्पन्न करने की विधि बतलाते हैं- पहली पृथिवीकी मिथ्यादृष्टि विष्कंभसूचीसे जगश्रेणीके बारहवें वर्गमूलको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे पहली पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यके भाजित करने पर दूसरी पृथिवीका मिथ्यादृष्टि द्रव्य आता है।
उदाहरण–४४ १९३ - ३९३, ९८८१६ : ३९३ = १६३८४ द्वि. पृ. मि. द्र.
उक्त भागहारके जितने अर्धच्छेद हो उतनीवार भज्यमान राशि प्रथम पृथिवीके द्रव्यके अर्धच्छेद करने पर भी दूसरी पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यका प्रमाण आता है।
अथवा, जगश्रेणीके बारहवें वर्गमूलके अर्धच्छेदों में पहली पृथिवीकी मिथ्यादृष्टि विष्कंभसूचीके अर्धच्छेद मिला देने पर जितना योग हो उतनी राशिका विरलन करके और उसे दोरूप करके परस्पर गुणा करनेसे जो राशि उत्पन्न हो उससे पहली पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यके भाजित करने पर दूसरी पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यका प्रमाण आता है। इन तीन भंगोंको पूर्वोक्त पन्द्रह भंगोंमें मिला देने पर दूसरी पृथिवीके अठारह भंग होते हैं। इसीप्रकार
भी पृथिवियोंमें प्रत्येक पृथिवीके अठारह अठारह भंग उत्पन्न कर लेना चाहिये । इन सब भंगोंका जोड़ एकसौ छव्वीस होता है।
विशेषार्थ-प्रथमादि पृथिवियों के द्रव्यकी अपेक्षा दूसरी पृथिवीका द्रव्य किसप्रकार
१ प्रतिषु 'सेदं छब्बीसुत्तरा' इति पाठः ।
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