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________________ १८६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, २, १९. विदियादिछप्पुढविअवहारकालो होदि । तस्स पमाणं केत्तियं ? विदियादिछप्पुढवीणं सत्तमपुढविमिच्छाइट्ठिसलागाहि जगसेढिविदियवगमूलमवहिदएगभागो हवदि । तेण जगसेढिम्हि भागे हिदे छप्पुढविमिच्छाइद्विदव्यमागच्छदि। तं जगसेढिणा खंडेऊणेगखंडं सामण्णणेरइयविक्खंभसूचिम्हि अवणिय सेसेण जगसेढिम्हि भागे हिदे पढमपुढविअवहारकालो आगच्छदि । अहवा पुबमाणिदछप्पुढविदव्वेण सामण्णणेरइयअवहारकालं गुणेऊण तम्हि उदाहरण-१६३८४ १६३८४ ___ अधस्तन विरलन १३ में १ मिला देने १४ वार पर २१ होता है। यदि इतने स्थान १६३८४ : १५८७२ -३२ जाकर उपरिम विरलनमें १ की हानि होती है तो उपरिम विरलनमात्र ४ स्थान जाकर कितनी हानि प्राप्त होगी? इसप्रकार त्रैराशिक ३ करने पर १२ हानिरूप अंक आ जाते हैं। इसे उपरिम विरलन ४ मेंसे घटा देने पर १३६ प्रमाण द्वितीयादि छह पृथिवियोंका अवहारकाल होता है। शंका-द्वितीयादि छह पृथिवियोंके उक्त भागहारका प्रमाण कितना है ? समाधान-सातवीं पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यकी अपेक्षा की गई द्वितीयादि छह पथिवियोंकी मिथ्यादृष्टि शलाकाओसे जगश्रेणीके द्वितीय वर्गमलके भाजित करने पर जो एक भाग लब्ध आता है उतना द्वितीयादि छह पृथिवियोंका अवहारकाल है । उक्त भागहारसे जगश्रेणीके भाजित करने पर द्वितीयादि छह पृथिवियोंके मिथ्यादृष्टि द्रव्यका प्रमाण आता है। उदाहरण-३२ + १६ + ८+४+२+ १ = ६३, १२८ : ६३ = द्वितीयादि छह पृथिवियोंका अवहारकाल । ६५५३६ : १२८ = ३२२५६ द्वितीयादि छह पृथिवियोंका मिथ्यादृष्टि द्रव्य । उक्त छह पृथिवियोंके मिथ्यादृष्टि द्रव्यको जगश्रेणीसे खण्डित करके जो एक खण्ड लब्ध आवे उसे सामान्य नारक मिथ्यादृष्टि विष्कंभसूची से घटा कर जो शेष रहे उससे जगश्रेणीको भाजित करने पर पहली पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यका अवहारकाल आता है। उदाहरण–३२२५६ ’ ६५५३६ = ६३, २-, १२८' १२८ १२८ ___६५५३६ : १९३ = ८३८६६०८ प्र. पृ. मि. अव. अथवा, पहले लाये हुए छह पृथिवियोंके मिथ्यादृष्टि द्रव्यके प्रमाणसे सामान्य मिथ्यादृष्टि नारकियोंके अवहारकालको गुणित करके जो लब्ध आवे उसमें पहली पृथिवीके ६३ ३ . ६३ - १९३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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