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________________ १८४ ] छक्खंडागमे जीवाणं [ १, २, १९. तदिय पुढविमिच्छाइट्ठिदव्वपमाणं पावेदि । पुणो तं तदिय पुढविमिच्छाइट्ठिदव्वं हेट्ठिमचउत्थ पुढविमिच्छाइदिव्त्रेण ओवट्टिय लद्धं विरलेऊण तदियपुढविदव्यमुवरिमविरलणपढमवोवरि द्विदं घेतूण समखंड करिय दिण्णे चउत्थपुढविमिच्छाइदिव्यं रूवं पडि पावेदि । पुणो एदं उचरिमविरलणदितदियढदिव्य म्हि दाऊण पुव्यं व समकरणं करिय परि हाणिरुवाणि आणयव्त्राणि । तं जहा - हेट्टिमविरलरूवाहियमेतद्भाणं गंतून जदि एगरूपपरिहाणी लब्भदि तो उवरिमविरलणम्हि केवडियरूवपरिहाणिं पेच्छामो त्ति रूवाहियमिरिणाए सेदिसमवग्गमूलमोवट्टिय लद्धुं तम्हि चेव सरिसच्छेदं काऊ अवणिदे तदियादिपंच पुढविमिच्छाइट्ठि अवहारकालो होदि । तस्स पमाणं केत्तियं ९ तदियादि - पंचपुढवीणं सत्तमपुढविदव्वस्स सलागाहि सेदिविदियवग्गमूलम्हि ओट्टिदे जं लद्धं तीसरी पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यका प्रमाण प्राप्त होता है । पुनः उस तीसरी पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यको नीचेकी चार पृथिवियों के मिध्यादृष्टि द्रव्य के प्रमाणसे अपवर्तित करके जो लब्ध आवे उसका विरलन करके उस विरलित राशि के प्रत्येक एकके ऊपर उपरिम विरलन के प्रथम अंकके ऊपर स्थित तीसरी पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यको ग्रहण करके और समान खण्ड करके देयरूपसे दे देने पर प्रत्येक एकके प्रति चौथी आदि चार पृथिवियों के मिथ्यादृष्टि द्रव्यका प्रमाण प्राप्त होता है । पुनः इस अधस्तन विरलन के प्रति प्राप्त द्रव्यको परम विरलन के प्रति प्राप्त तीसरी पृथिवीके द्रव्यके ऊपर देकर पहले के समान समीकरण करके हानिरूप विरलन अंक ले आना चाहिये। जैसे- उपरिम विरलन में एक अधिक अधस्तन विरलनमात्र स्थान जाकर यदि एककी हानि प्राप्त होती है तो संपूर्ण उपरिम विरलनमें कितनी हानि प्राप्त होगी, इसप्रकार त्रैराशिक करके एक अधिक अधस्तन विरलनसे जगश्रेणीके दशवें वर्गमूलको अपवर्तित करके जो लब्ध आवे उसे समान छेद करके जगश्रेणीके उसी दशवें वर्गमूलमेंसे अपनयन करने पर तीसरी आदि पांच पृथिवियोंके मिध्यादृष्टि द्रव्यका अवहारकाल होता है । उदाहरण – ८१९२ ८१९२ १ १ ८ वार; ८१९२ ÷ ७६८० = ७६८० १ Jain Education International उपरम विरलन ८ मेंसे घटा देने पर १६. १५ ५१२ १ १५ . अधस्तन विरलन १५ में १ मिला देने पर २ होते हैं | यदि इतने स्थान जाकर उपरिम विरलन में १ की हानि प्राप्त होती है तो उपरम विरलनमात्र ८ स्थान जाने पर कितनी हानि होगी, इसप्रकार त्रैराशिक करने पर की हानि आ जाती है । इसे शेष रहते हैं । १२० ३ श् शंका - तृतीयादि पांच पृथिवियोंके उक्त भागहारका प्रमाण कितना है ? समाधान - तृतीयादि पांच पृथिवियोंकी सातवीं पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यको अपेक्षा की गई शलाकाओं से जगश्रेणीके द्वितीय वर्गमूलके अपवर्तित करने पर जितना लब्ध आवे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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