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१, २, १९.] दव्वपमाणाणुगमे णिरयगदिपमाणपरूवणं
[ १७३ पक्खेवअवहारकालसलागाओ आणेयव्याओ। णवरि विसेसो सेढिदसमवग्गमूलगुणिदपढमपुढविविक्खंभसूईए सामण्णवहारकालम्हि भागे हिदे तदियपुढविअवहारकालपक्खेवसलागाओ आगच्छति । एदाओ पुबिल्लदोण्हं विरलणाणं पस्ते विरलिय सामण्णअवहारकालमेत्ततदियपुढविदव्यं समखंडं करिय दिण्णे रूवं पडि पढमपुढविदव्यपमाणं पावदि । पढमगुढविविक्खंभसूचिगुणिदसढिअट्ठमवग्गमूलेण सामण्णवहारकालम्हि भागे हिदे चउत्थपुढविअवहारकालपक्वेवसलागाओ आगच्छंति । ताओ वि पुचिल्लतिण्हं विरलणाणं पस्से विरलिय सामण्णअवहारकालमेतचउत्थपुढविमिच्छाइद्विदव्यं समखंड
पृथिवियों की अवहारकाल प्रक्षेपशलाकाएं ले आना चाहिये। केवल इतनी विशेषता है कि जगश्रेणीके दशवें वर्गमूलसे प्रथम पृथिवीकी मिथ्यादृष्टि विष्कंभसूचीको गुणित करके जो लब्ध आवे उसका सामान्य अवहारकालमें भाग देने पर तीसरी पृथिवीका आश्रय करके अवहारकाल प्रक्षेपशलाकाएं आ जाती हैं। उदाहरण-८४ १९३ = १९३, ३२७६८ १९३ = ५२४२८८ तीसरी पृथिवीके
आश्रयसे उत्पन्न हुई प्र. अ. श.। इन प्रक्षेप अवहारकाल शलाकाओंको पूर्वोक्त दोनों विरलनोंके पासमें विरलित करके और विरलित राशिके प्रत्येक एकके ऊपर सामान्य अवहारकालमात्र अर्थात् सामान्य अव
काल गुणित तीसरी पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यको समान खंड करके देयरूपसे दे देने पर विरलित राशिके प्रत्येक एकके प्रति प्रथम पृथिवीसंबन्धी मिथ्यादृष्टि द्रव्यका प्रमाण प्राप्त होता है। उदाहरण-३२७६८४ ८१९२ = २६८४३५४५६;
२६८४३५४५६ : ५२४२००= ९८८१६ प्र. पृ. मि. द्रव्य. प्रथम पृथिवीकी मिथ्यादृष्टि विष्कंभसूचीसे जगश्रेणीके अष्टम वर्गमूलको गुणित करके जो लब्ध आवे उसका सामान्य अवहारकालमें भाग देने पर चौथी पृथिवीके आश्रयसे उत्पन्न हुई अवहारकाल प्रक्षेपशलाकाएं आ जाती हैं। , उदाहरण-१६४ १९३ = १९३, ३२७६८ : १९३ = २६२१४४ चौथी पृथिवीके
आश्रयसे उत्पन्न हुई प्रक्षेप अकहारकाल शलाकाएं । चौथी पृथिवीके आश्रयसे उत्पन्न हुई उन प्रक्षेप अवहारकाल शलाकाओंको पूर्वोक्त तीन विरलनोंके पासमें विरलित करके और विरलित राशिके प्रत्येक एकके ऊपर सामान्य अघहारकालमात्र अर्थात् सामान्य अवहारकालगुणित चौथी पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यको समान खण्ड करके देयरूपसे दे देने पर विरलित राशिके प्रत्येक एकके प्रति प्रथम पृथिवीके
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