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छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, २, १९.
लब्भंति । तं जहा - सेढिवारसवग्गमूलगुणिद पढम पुढविधिक वंभसूचिमेतद्वाणं गंतून जदि एगा अवहारकालपक्खेवसलागा लब्भदि तो सामण्णअवहारकालम्हि केत्तियाओ लभामो त्ति पढमढविविक्खंभसूचिगुणिद से ढिवारसवग्गमूलेण सामण्णअवहारकालम्हि भागे हिदे विदिय पुढविदव्वमस्ति ऊणुप्पण्णपक्खेव सलागाओ सच्चाओ आगच्छंति । एदाओ पुत्र सामण्णअवहारकालस्स पक्खे विरलिय सामण्णअवहारकालमे त्तविदिय पुढविदव्वे समखंड करिय दिण्णे रूवं पडि पढमपुढविमिच्छाइट्ठिदव्यपमाणं होऊण पावदि । एवं चेव सामण्णअवहारकालमेत्ततदियादिपंचपुढविदव्वाणि अस्सिऊण तासं तासिं पुढवीणं
असंख्यातवें भागमात्र अवहारकाल प्रक्षेपशलाकाएं प्राप्त होती हैं। जैसे— जगश्रेणी के बारहवें वर्गमूल से प्रथम पृथिवीसंबन्धी मिथ्यादृष्टि विष्कंभसूचीको गुणित करके जो लब्ध आवे तन्मात्र स्थान जाकर यदि एक अवहारकाल प्रक्षेपशलाका प्राप्त होती है तो सामान्य अवहारकालमें कितनी प्रक्षेपशलाकाएं प्राप्त होंगी, इसप्रकार त्रैराशिक करके प्रथम पृथिवी - संबन्धी मिथ्यादृष्टि विष्कंभसूची से गुणित जगश्रेणी के बारहवें वर्गमूलका सामान्य अवहारकालमें भाग देने पर दूसरी पृथिवीका आश्रय करके उत्पन्न हुई संपूर्ण प्रक्षेप शलाकाएं भा जाती है ।
दूसरी
पृथिवीके
इन अवहारकाल प्रक्षेपशलाकाओंको पृथक् रूपसे सामान्य अवहारकालके पास में विरलित करके और उस विरलित राशिके प्रत्येक एकके ऊपर सामान्य अवहारकालमात्र अर्थात् जितना सामान्य अवहारकालका प्रमाण हो उतनीवार स्थापित दूसरी पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यको समान खण्ड करके देयरूपसे दे देने पर विरलित राशि प्रत्येक एकके प्रति प्रथम पृथिवीके मिध्यादृष्टि द्रव्यका प्रमाण प्राप्त होता है ।
=
÷
१९३ _ १९३, ३२७६८ १९३ १०४८५७६ उदाहरण - ४x १२८ ३२ १ ३२ १९३ आश्रय से उत्पन्न हुई प्रक्षेप अवहारकाल शलाकाएं ।
उदाहरण - ऊपर जो ५४३३३ प्रक्षेप अवहारकाल आया है उसका विरलन करके विरलित राशि के प्रत्येक एकके प्रति सामान्य अवहारकालमात्र अर्थात् सामान्य अवहार कालगुणित द्वितीय पृथिवीसंबन्धी मिथ्यादृष्टि द्रव्यको देवरूपसे दे देने पर प्रत्येक एकके प्रति प्रथम पृथिवीसंबन्धी मिथ्यादृष्टि द्रव्य प्राप्त होता है, जो सामान्य अवहारकालगुणित द्वितीय पृथिवीके द्रव्य में उक्त प्रक्षेप अवहारकालका भाग देने पर भी आ जाता है । यथा१०४८५७६ ३२७६८ x १६३८४ = ५३६८७०९१२; १९३
५३६८७०९१२ ÷
= ९८८१६ प्र. पू. मि. द्रव्य.
इसीप्रकार सामान्य अवहारकालमात्र अर्थात् जितना सामान्य अवहारकालका प्रमाण हो उतनीवार तीसरी आदि पांच पृथिवियोंके मिथ्यादृष्टि द्रव्यका आश्रय लेकर उन उन
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