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________________ १, २, १९.] दव्वपमाणाणुगमे णिरयगदिपमाणपरूवणं [१७१ पुणो दोपुढविविक्खंभसूचिम्हि सेढिविदियवग्गमूलेण एगरूवं खंडिय तत्थ एगखंडमवणिदे पढमपुढविमिच्छाइट्टिदबस्स विक्खंभसूची होदि । पुणो ताए विक्खंभसईए जगसेढिम्हि भागे हिदे वि पढमपुढविमिच्छाइट्ठिदव्वस्स अवहारकालो आगच्छदि । पुणो संपहि सामण्णअवहारकालमेत्तछप्पुढविदव्यमस्सिऊण पुढवि पडि अवहारकालपक्खेवसलागाओ आणिज्जंति । तत्थ तार विदियपुढविमस्सिऊण उप्पण्णअवहारकालपक्खेवसलागाओ भणिस्सामो । तं जहा- विदियपुढविमिच्छाइडिदव्वेण पढमपुढविमिच्छाइविदव्वमवहरिय लद्धमत्तेसु विदियपुढविमिच्छाइविदव्बेसु सामण्णअवहारकालमत्तविदियपुढविदव्वम्मि समुदिदेसु एगं पढमपुढविमिच्छाइहिदव्यपमाणं लगभइ, एगा अवहारकालपक्खेवसलागा। पुणो वि एत्तियमेत्तेसु विदियपुढविमिच्छाइट्टिदव्येसु समुदिदेसु पढमपुढविमिच्छाइट्ठिदव्यपमाणं लब्भइ, विदिया अवहारकालपक्खेवसलागा च । एवं पुणो पुणो कीरमाणे सेढीए असंखेज्जभागमेत्ताओ अवहारकालपक्खेवसलागाओ १२८ पृथिवीका अवहारकाल । ___ अनन्तर जगश्रेणीके द्वितीय वर्गमूलसे एकरूपको खंडित करके वहां जो एक खंड लब्ध आवे उसे पूर्वोक्त दो पृथिवीसंबन्धी मिथ्यादृष्टि विष्भसूचीमेंसे घटा देने पर पहली पृथिवीसंबन्धी मिथ्यादृष्टि द्रव्यकी विष्भसूची होती है। अनन्तर उस विष्भसूचीका जगश्रेणी में भाग देने पर पहली पृथिवीसंबन्धी मिथ्यादृष्टि द्रव्यका अवहारकाल आता है। उदाहरण-११२८ = १ १२८ ६४ १२८ १२८ । = १९२ पहली पृथिवीकी मिथ्यादृष्टि विष्कंभसूची । ६५५३६ : १९२ = ८३८८६०८ पहली पृथिवीका मिथ्यादृष्टि अवहारकाल। अब सामान्य अवहारकालका जितना प्रमाण है उतनीवार छह पृथिवियों के द्रव्यका आश्रय लेकर प्रत्येक पृथिवीके प्रति प्रक्षेप अवहारकाल शलाकाएं लाते हैं। उनमें पहले दूसरी पृथिवीका आश्रय लेकर उत्पन्न हुई अघहारकाल प्रक्षेपशलाकाओंका कथन करते हैं । वह इसप्रकार है-दूसरी पृथिवीसंबन्धी मिथ्यादृष्टि द्रव्यसे पहली पृथिवीसंबन्धी मिथ्यादृष्टि द्रव्यको अपहृत करके जो लब्ध आवे तन्मात्र स्थानों पर स्थापित दूसरी पृथिवीसंबन्धी मिथ्यादृष्टि द्रव्यको सामान्य अवहारकालमात्र (सामान्य अवहारकालका जितना प्रमाण है उतनी वार स्थापित ) दुसरी पृथिवीसंबन्धी द्रव्यमेंसे समुदित करने पर पहलीवार प्रथम पृथिवीसंबन्धी मिथ्यादृष्टि द्रव्यका प्रमाण आता है, और अवहारकालमें एक प्रक्षेपशलाका उत्पन्न होती है। फिर भी इतनेमात्र दूसरी पृथिवीसंबन्धी मिथ्यादृष्टि द्रव्यके समुदित कर देने पर दूसरीवार प्रथम पृथिवीसंबन्धी मिथ्यादृष्टि द्रव्यका प्रमाण प्राप्त होता है, और अवहारकालमें दूसरी प्रक्षेपशालाका प्राप्त होती है। इसीप्रकार पुनःपुनः करने पर जगश्रेणीके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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