SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 262
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १, २, १९.] दव्वपमाणाणुगमे णिरयगदिपमाणपरूवणं [१६९ वग्गमूलभजिदएगरूवं विक्खंभसूचिम्हि अवाणय सेढिं गुणिदे विदियपुढविदव्वेण विणा सेसछप्पुढविदव्यमागच्छदि । पुणो ताए चेव ऊणविक्खंभसूचीए जगसेढिम्हि भागे हिदे विदिय पुढविवादिरित्तछपुढविमिच्छाइडिदव्यस्स अवहारकालो होदि । पुणो तम्हि चेव छप्पुढविविक्खंभमूचिम्हि एगरूवं सेढिदसमवग्गमूलेण खंडिय तत्थ एगखंडमवणीए विदिय-तदियपुढविवदिरित्तसेसपंचपुढविमिच्छाइढिदव्वस्स विक्खंभसूची होदि । पुणो ताए चेव विक्खं भसूचीए जगसेडिम्हि भागे हिदे पंचपुढविमिच्छाइट्ठिदव्वस्स अवहारकालो होदि । पुणो तम्हि चेव पंचपुढविविक्खंभसूचिम्हि एगरूवं सेढिअहमवग्गमूलेण खंडिय एगखंडमवणिदे विदिय-तदिय-चउत्थपुढविवदिरित्तचत्तारिपुढविमिच्छाइदिव्यस्स विक्खंभसूई होदि । पुणो ताए विखंभसूईए जगसेढिम्हि भागे हिदे चउण्डं पुढवाणं मिच्छा जगश्रेणीके बारहवें वर्गमूलसे एक संख्याको भाजित करके जो लब्ध आवे उसे विष्कंभसूची से घटाकर शेष प्रमाणसे जगश्रेणीके गुणित करने पर द्वितीय पृथिवीगत द्रव्यके विना शेष छह पृधिवीसंबन्धी मिथ्यादृष्टि द्रव्यका प्रमाण आता है। तथा उसी ऊन विष्कभसूचीसे जगश्रेणीको भाजित करने पर दूसरी पृथिवीके अवहारकालके विना शेष छह पृथिवियोंके मिथ्यादृष्टि द्रव्यका अवहारकाल आता है। उदाहरण-१४ = १,२-.-; ६५५३६४* = ११४६८८ दूसरी पृथिवीके द्रव्यके विना शेष छह पृथिवियों का मिथ्यादृष्टि द्रव्य । ६५५३६ : ७ = २६२१४४ दूसरी पृथिवीके अवहारकालके विना शेष छह पृथिवियोंका अवहारकाल। अनन्तर जगश्रेणीके दशवें वर्गमूलसे एक रूपको खण्डित करके जो एक खण्ड लब्ध आवे उसे पूर्वोक्त उसी छह पृथिवीसंबन्धी विष्कंभसूची से घटा देने पर दूसरी और तीसरी पृथिवीके विना शेष पांच पृथिवीसंबन्धी मिथ्यादृष्टि द्रव्यकी विष्कंभसूची होती है। पुनः उसी विष्कंभसूचीसे जगश्रेणीके भाजित करने पर (दूसरी और तीसरीके विना) पांच पृथिवियोंके मिथ्यादृष्टि द्रव्यका अवहारकाल होता है। __ उदाहरण-१ : ८= १ - १ - १३ दूसरी और तीसरीके विना शेष पांच पृथिवियोंकी विष्कंभसूची । ६५५३६ : १३ – ५२४२८८ दूसरी और तीसरीके _ विना शेष पांच पृथिवियोंका अवहारकाल। अनन्तर जगश्रेणीके आठवें वर्गमूलसे एक रूपको खण्डित करके जो एक खण्ड लब्ध आवे उसे पूर्वोक्त उसी पांच पृथिवीसंबन्धी विष्कंभसूचीमेंसे घटा देने पर दूसरी, तीसरी और चौथी पृथिवीको छोड़कर शेष चार पृथिवियोंके मिथ्यादृष्टि द्रव्यकी विष्कंभसूची होती ८१२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy