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________________ १६२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [ १, २, १९ परूवणाए सामण्णणेरइयपरूवणादो विसेसाभावादो । पुणो पज्जवडियणए अवलंबिजमाणे विसेसो अत्थि चेव, अण्णहा विदियादिपुढवीसु जीवाभावप्पसंगादो। तं विसेसं वत्तइस्सामो । तं जहा- पढमपुढविणेरइयाणं दव्य-कालपमाणेसु भण्णमाणेसु ओघदव्य कालपमाणाणि चेव असंखेजदिभागहीणाणि हवंति । तहा खेत्तपमाणं पि ओघखेत्तपमाणादो असंखेजदिभागूणं भवदि । तं कधं जाणिज्जदे ? 'विदियादि जाव सत्तमाए पुढकीए णेरइया खेतेण सेढीए असंखेजदिभागो' इदि पुरदो वुच्चमाणसुत्तादो णव्वदे जहा ओघणेरइयमिच्छाइडिदव्वादो पढमपुढविणेरइयमिच्छाइट्ठिदवं सेढीए असंखेजदिभागेण हीणमिदि । एदं सुत्तमवलंबिय पढमपुढविणेरइयमिच्छाइट्ठीणं विक्खंभसूई उप्पाइस्सामो । तं जहा- ओघणेरइयमिच्छाइद्विरासीदो एगसेढिअवणयणं पडि जदि विक्खंभमचिम्हि एगसलागाए अवणयणं लब्भदि तो किंचूणवारसवग्गमूलभजिदसेढिम्हि किं लभामो त्ति सेढीए फलगुणिदिच्छामोवट्टिदे किंचूणवारसवग्गमूलभजिदेगरूपमागच्छदि । एदं प्ररूपणामें सामान्य नारकियोंकी प्ररूपणासे कोई विशेषता नहीं है। परंतु पर्यायार्थिक नयका अवलम्बन करने पर सामान्य प्ररूपणासे प्रथम पृथिवीसंबन्धी प्ररूपणामें विशेषता है ही। यदि ऐसा न माना जाय तो द्वितीयादि पृथिवियोंमें जीवोंके अभावका प्रसंग आ जायगा। आगे उसी विशेषताको बतलाते हैं। वह इसप्रकार है पहली पृथिवीके नारकियोंके द्रव्य और कालकी अपेक्षा प्रमाणका कथन करने पर सामान्यसे कहे गये द्रव्यप्रमाण और कालप्रमाणको असंख्यातवें भाग न्यून कर देने पर पहली पृथिवीके नारकियोंका द्रव्य और कालकी अपेक्षा प्रमाण होता है। उसीप्रकार पहली पृथिवीके नारकियोंका क्षेत्रकी अपेक्षा प्रमाण भी सामान्यसे कहे गये क्षेत्रप्रमाणसे असंख्यातवां भाग न्यून है। शंका-यह कैसे जाना जाता है ? समाधान-'दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवीतक नारकी जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? जगश्रेणीके असंख्यातवें भाग हैं' इसप्रकार आगे कहे जानेवाले सूत्रसे जाना जाता है कि नारक सामान्य मिथ्यादृष्टियोंके द्रव्यप्रमाणसे पहली पृथिवीके नारक मिथ्यादृष्टि जीवोंका द्रव्यप्रमाण जगश्रेणीका असंख्यातवां भाग हीन है। ___अब आगे इस द्वितीयादि पृथिवियों के प्रमाणके प्ररूपण करनेवाले सूत्रका अवलंबन लेकर पहली पृथिवीके नारक मिथ्यादृष्टियोंकी विष्कंभसूची उत्पन्न करते हैं। वह इसप्रकार है-जब कि सामान्य नारक मिथ्यादृष्टि जीवराशिमेंसे एक जगश्रेणी कम करने पर विष्कमसूची में एक शलाका कम होती है, तो कुछ कम अपने बारहवें वर्गमूलसे भाजित जगश्रेणीमें कितना प्रमाण प्राप्त होगा, इसप्रकार त्रैराशिक करके इच्छराशि अपने कुछ कम बारहवें वर्ग. मूलसे भाजित जगश्रेणीको फलराशि एकसे गुणित करके जगश्रेणीसे अपवर्तित करने पर, एकमें जगश्रेणीके कुछ कम बारहवें वर्गमूलका भाग देनेसे जो लब्ध आवे उतना आता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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