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१, २, १९.] दव्वपमाणाणुगमे णिरयगदिपमाणपरूवणं
[१६३ सामण्णणेरइयमिच्छाइटिविक्खंभसूचिम्हि अवणिदे पढमपुढविणेरइयमिच्छाइहिरासिस्स विक्खंभसूई होदि। एदीए विक्खंभसूईए जगसेढिम्हि भागे हिदे पढमपुढविणेरइयमिच्छाइटिअवहारकालो होदि ।
६३
उदाहरण-बारहवां वर्गमूल ४; किंचित् ऊन बारहवां वर्गमूल १२८,
६:५३६ : १३६ = ३२२५६, ३२२५६ ४ १ = ३२२५६६
३२२५६ : ६५१३६ = ६३ = १ : १२८, इस किंचित् ऊन बारहवें वर्गमूलभाजित एकरूपको सामान्य नारक मिथ्यादृष्टिसंबन्धी विकभसूचीमेंसे घटा देने पर प्रथम पृथिवीके नारक मिथ्यादृष्टि राशिकी विष्कंभसूची होती है। इस विष्कंभसूचीसे जगश्रेणीके भाजित करने पर प्रथम पृथिवीके नारक मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल होता है।
। ६३ _ १९३, ६५५३६ . १९३ = ८३८८६०८, प्र. प्र. मि. अव.। उदाहरण-२-.
१२८ १२८ १ १२८ १९३ विशेषार्थ-जगश्रेणीके बारहवें, दशवें, आठवें, छठे, तीसरे और दूसरे वर्गमूलका जगश्रेणी में भाग देने पर जमसे द्वितीयादि पृथिवियोंके मिथ्यादृष्टि नारकियोंका द्रव्य आता है। और इन छहों नरकोंके मिथ्यादृष्टि जीवोंका जितना प्रमाण हो उसे सामान्य मिथ्यादृष्टि राशिमेसे घटा देने पर प्रथम पृथिबीके मिथ्यादृष्टि जीवोंका प्रमाण होता है। पहले सामान्य मिथ्यादृष्टि नारकियोंका प्रमाण बतलाते समय उनकी विष्कंभसूची घनांगुलके द्वितीय वर्गमूलप्रमाण बतलाई है, अर्थात् घनांगुलके द्वितीय वर्गमूलका जितना प्रमाण हो उतनी जगश्रेणियोंको एकत्रित करने पर उनके प्रदेशप्रमाण सामान्य मिथ्यादृष्टि जीवराशि होती है। अब यदि प्रथम नरकके नारकियोंके प्रमाण लाने के लिये विष्कंभसूची लाना हो तो द्वितीयादि नरकके मिथ्यादृष्टि नारकियोंके प्रमाणमें जगश्रेणीका भाग देने पर जो लब्ध आवे उसे सामान्य विष्कभसूची से घटा देने पर प्रथम नरककी विष्कभसूची आ जाती है। उदाहरणार्थ-दूसरे नरकका १६३८४, तीसरेका ८१९२, चौथेका ४०९६, पांचवेंका २०४८, छठेका १०२४ और सातवेंका ५१२ द्रव्य मान लेने पर इनमें जगश्रेणी ६५५३६ का भाग देने पर क्रमसे ,,, १५और १८ आता है, जिनका जोड़ ६३ होता है। इसे सामान्य विष्कभसूची २ मेंसे घटा देने पर १२३ प्रमाण प्रथम पृथिवीकी विष्कभसूची होती है। इसी व्यवस्थाको ध्यानमें रखकर ऊपर यह कहा गया है कि किंचित् ऊन बारहवें वर्गमूल भाजित एकरूपको सामान्य नारक मिथ्यादृष्टि विष्कंभसूचीमेंसे घटा देने पर प्रथम नरकके मिथ्यादृष्टि नारकियोंका प्रमाण
१ तम्हा पुत्रिलविक्खंभसूची ( सासण्णणेरइयविक्खंभसूची) एगरूपस्स असंखेजदिभागेणूणा पढमपुरविणेरायाणं विक्खंभसूची होदि । धवला; पत्र. ५१८ अ.
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