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१, २, १८.] दव्वपमाणाणुगमे णिरयगदिपमाणपरूवणं
[१५. सफलत्तण्णहाणुववत्तीदो । तस्स भेदस्स परूवणटं सासणसम्माइडिआदिगुणपडिवण्णाणं अवहारकाले वत्तइस्सामो । तं जहा
ओघअसंजदसम्माइडिअवहारकालं विरलेऊण पलिदोवमं समखंडं करिय दिण्णे एकेकस्स रूवस्स असंजदसम्माइट्ठिदवपमाणं पावेदि । देवगई मोत्तूण सेसतिगदिअसंजदसम्माइद्विरासी सामण्णअसंजदसम्माइहिरासिस्स असंखेजदिभागो। तस्स को पडि भागो ? आवलियाए असंखेजदिभागो । ओघअसंजदसम्माइहिरासिस्स असंखेज्जा भागा देवाणमसंजदसम्माइडिरासी होदि । कुदो ? देवेसु बहूर्ण सम्मत्तुप्पत्तिकारणाणमुवलंभादो। देवाणं सम्मत्तुप्पत्तिकारणाणि काणि चे ? जिणर्विविद्धिमहिमादसण-जाइस्सरण-महिद्धिंदादिदंसण-जिणपायमूलधम्मसवणादीणि' । तिरिक्खणेरइया पुण गरुवपाव
उक्त भेदके प्ररूपण करनेके लिये सासादनसम्यग्दृष्टि आदि गुणस्थानप्रतिपन्न जीवोंका प्रमाण लानेके लिये अवहारकालोंको बतलाते हैं। वह इसप्रकार है
सामान्यसे कहे गये असंयतसम्यग्दृष्टिसंबन्धी अवहारकालको विरलित करके और उस विरलित राशिके प्रत्येक एकके ऊपर पल्योपमको समान खंड करके देयरूपसे दे देने पर प्रत्येक एकके प्रति असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशिका प्रमाण प्राप्त होता है।
उदाहरण- १ उदाहरण_१६३८४ १६३८४ १६३८४ १६३८४ एक विरलनके प्रति प्राप्त असं
१ १ १ यतसम्यग्दृष्टि जीवराशि। इसमें देवगतिसंवन्धी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशिको छोड़कर शेष तीन गतिसंबन्धी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशि सामान्य असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशिके असंख्यातवें भागप्रमाण है।
शंका- शेष तीन गतिसंबन्धी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशिका प्रमाण पल्योपमके असंख्यातवें भागरूप लानेके लिये प्रतिभागका प्रमाण क्या है ?
समाधान-आवलीका असंख्यातवां भाग प्रतिभागका प्रमाण है।
सामान्यसे कही गई असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशिका असंख्यात बहुभागप्रमाण देवोंसंबन्धी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशि है, क्योंकि, देवों में सम्यक्त्वकी उत्पत्तिके बहुतसे कारण पाये जाते हैं।
शंका- देवों में सम्यक्त्वकी उत्पत्तिके कारण कौनसे हैं ?
समाधान-जिनबिम्बसंबन्धी अतिशयके माहात्म्यका दर्शन, जातिस्मरणका होना, महर्धिक इन्द्रादिकका दर्शन और जिनदेवके पादमूलमें धर्मका श्रवण आदि देवोंमें सम्क्त्वोत्पत्तिके कारण हैं। परंतु तिर्यंच और नारकी गुरुतर पापोंके भारसे नथे और बंधे होनेसे, अतिशय
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१ देवाना केषाचिज्जातिस्मरणं, केषांचिद्धर्म श्रवणं, केषांचिज्जिनमहिमदर्शन, केषाचिदेवर्थिदर्शनम् । स.सि. १,५.
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