SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 251
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [ १, २, १८. भारेण णत्थणद्धत्तादो संकिलिधरत्तादो मंदबुद्धित्तादो बहूणं सम्मनुप्पत्तिकारणाणमभावादो च सम्माइट्ठिणो थोवा हवंति । तदो तिगदिअसंजदसम्माइहिरासिणा उवरिमेगरूवधारदं ओघासंजदसम्माइट्ठिदव्यमवहरिय तत्थागदमावलियाए असंखेजदिमागं विरलेऊण ओघासंजदसम्माइट्ठिदव्वं समखंडं करिय दिण्णे हेट्ठिमविरलणरूवं पडि सेसतिगदिअसंजदसम्माइहिरासिपमाणं पावदि । तप्पमाणं उवरिमविरलणाए उपरिमरूवं पडि द्विदओघासंजदसम्माइहिदधम्हि अवणेयव्वं । एवमवणिदे उवरिमविरलणमेता चेव देव असंजदसम्माइद्विरासीओ तिगदिअसंजदसम्माइद्विरासीओ च भवंति । पुगो उवरिमविरलणमेत्ततिगदिअसंजदसम्माइट्ठिरासि देव असंजदसम्माइट्ठिरासिपमाणेण कस्सामो। तं जहा रूवूणहेट्ठिमविरलणमेत्तेसु तिगदिअसंजदसम्माइट्ठिदव्बेसु उवरिमविरलणम्हि ट्टिदेसु समुदिदेसु एगं देवअसंजदसम्माइद्विरासिपमाणं लब्भदि, अवहारकालम्हि एगा संक्लिष्ट परिणामी होनेसे, मन्दबुद्धि होनेसे और उनमें सम्यक्त्वकी उत्पत्तिके बहुतसे कारणोंका अभाव होनेसे सम्यग्दृष्टि थोड़े होते हैं। तदनन्तर उपरिम विरलनके एकके प्रति रक्खी हुई सामान्य असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशिको तीन गतिसंबन्धी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशिसे भाजित करके वहां जो आवलीका असंख्यातवां भाग लब्ध आवे उसका विरलन करके और उस विरलित राशिके प्रत्येक एकके प्रति सामान्य असंयतसम्यग्दृष्टि द्रव्यको समान खंड करके देयरूपसे दे देने पर अधस्तन विरलनके प्रत्येक एकके प्रांत तीन गांतसंबन्धा असयतसम्यग्दृष्टि जीवराशि प्राप्त होता है। इस प्रमाणको उपरिम विरलनके उपरिम एकके प्रति प्राप्त सामान्य असंयतसम्यग्दृष्टि द्रव्यमेंसे निकाल देना चाहिये। इसप्रकार निकाल देने पर उपरिम विरलनमात्र देवगतिसंबन्धी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशियां और तीन गतिसंबन्धी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशियां होती है। उदाहरण-तीन गतिसंबन्धी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशि ४०९६ः ४०९६ ४०९६४०९६ ४०९६ १६३८४४०९६% ४ १ १ १ १ इस ४०९६ को उपरिम विरलनके प्रत्येक एकके प्रति प्राप्त १६३८४ में घटा देने पर १२२८८ आते हैं। यही देवगतिसंबन्धी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशि है, और४०९६ तीन गतिसंबन्धी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशि है। अब आगे उपरिम विरलनमात्र अर्थात् उपरिम विरलनगुणित तीन गतिसंबन्धी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशिको देव असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशिके प्रमाणसे करके बतलाते हैं। उसका स्पष्टीकरण इसप्रकार है एक कम अधस्तन विरलनमात्र अर्थात् एक कम अधस्तन विरलनगुणित उपरिम विरलनमें स्थित तीन गतिसंबन्धी असंयतसम्यग्दृष्टि द्रव्यको समुदित कर देने पर एक देव १ प्रतिषु ' णत्थद्धत्तादो संकिलिहदरतादो' इति पाठः । ४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy