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छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, २, १८.
जगपदरस माणवे रूव वग्गवग्गस्स
असंखेअदिभागेण
जगपदरस्त
असंखेञ्जदिभागेण
लोगस्स असंखेज्जदिभागेण च णेरइयमिच्छाइडिरासिणा गहिदगहिदो गहिद गुणगारो च बत्तव्वो । मिच्छाइद्विरासिपरूवणा समत्ता ।
सासणसम्माइट्टि पहुड जाव असंजदसम्माइड त्ति दव्वपमाणेण केवडिया, ओघं ॥ १८ ॥
ओघम्मि वृत्ततिष्णिगुणद्वाणरासी सव्वा वि णेरइयाणं तिष्णिगुणद्वाणरासिमेत चेव होदिति बुत्ते सेसगदीसु तिण्हं गुणट्ठाणाणमभावो पसज्जदे ? ण एस दोसो, रइयाणं तिहं गुणट्ठाणाणं पमाणस्स ओघतिगुणहाणपमाणेण पलिदोवमस्स असंखेअदिभागतं पडि विसेसाभावादो एयत्ताविरोहा । पज्जवट्ठियणए पुण अवलंबिज्ज माणे भेदो दोहमत्थि चेव, सेसतिगदितिन्हं गुणद्वाणाणं पमाणपरूवणाणमुवरि उच्चमाणसुत्ताणं
जगप्रतरके समान द्विरूपवर्गका जितना उपरिम वर्ग हो उसके असंख्यातवें भागरूप, जगप्रतरके असंख्यातवें भागरूप और घनलोकके असंख्यातवें भागरूप नारक मिथ्यादृष्टि जीवराशिके द्वारा गृहीतगृहीत और गृहीतगुणकारका कथन करना चाहिये ।
इस प्रकार मिथ्यादृष्टिराशिकी प्ररूपणा समाप्त हुई ।
सासादन सम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थान में नारकी जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? गुणस्थान प्ररूपणा समान हैं ॥ १८ ॥
शंका- गुणस्थानों में कही गई तीन गुणस्थानसंबन्धी जीवराशि संपूर्ण नारकियोंके तीन गुणस्थानसंबन्धी जीवराशिके बराबर ही होती है, ऐसा कहने पर शेष तीन गतियों में तीनों गुणस्थानोंका अभाव प्राप्त होता है ?
समाधान - यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, नारकियोंके तीन गुणस्थानसंबन्धी जीवराशिके प्रमाणकी सामान्य से कही गई तीन गुणस्थानसंबन्धी जीवराशिके प्रमाणके साथ पल्योपमके असंख्यातवें भागत्वके प्रति कोई विशेषता नहीं है, इसलिये इन दोनोंको समान मान लेने में कोई विरोध नहीं आता है । परंतु पर्यायार्थिक नयका अवलंबन करने पर दोनों में भेद है ही । यदि ऐसा न माना जाय तो शेषकी तीन गतिसंबन्धी सासादनादि तीन गुणस्थानों की जीवराशिके प्रमाणके प्ररूपण करनेके लिये कहे गये सूत्रोंकी सफलता नहीं बन सकती है । अब
पस्योपमासंख्येयभाग
१ सर्वासु पृथिवीसु सासादनसम्यग्दृष्टयः सम्यङ्मिथ्यादृष्टयोऽसंयत सम्यग्दृष्टयश्व शमिताः । स. सि. १,८०
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