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________________ १५२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, २, १७. वत्तइस्सामो । सेढीए असंखेजदिभागभूदअवहारकालेण सेढिम्हि भागे हिदे तत्थागदेण सेढिम्हि गुणिदे मिच्छाइहिरासी होदि । अधवा विक्खंभसूचीरूवेहि सेढिम्हि गुणिदे मिच्छाइद्विरासी होदि । अहवा अवहारकालेण सेढिविदियवग्गमूलमवहरिय लद्धेण तं चेव गुणिदे तेण सेढिपढमवग्गमूलं गुणेऊण तेण सेढिम्हि गुणिदे वि मिच्छाइद्विरासी आगच्छदि । अहवा अवहारकालेण सेढितदियवग्गमूलमवहरिय लद्धेण तं चेव गुणिय तेण सेढिविदियवग्गमूलं गुणिय तेण पढमवग्गमूलं गुणिय तेण गुणिदरासिणा सेढिम्हि गुणिदे मिच्छाइहिरासी होदि । एवं हेहा वि जाणिऊण वत्तव्यं । घणाघणे वत्तइस्सामो । अधस्तन विकल्पको बतलाते है- प्रकृतमें द्विरूपधारामें अधस्तन विकल्प संभव नहीं है। यहां कारणका कथन पहलेके समान कहना चाहिये। विशेषार्थ-यदि जगश्रेणीके किसी भी वर्गमूलमें अवहारकालका भाग दिया जाता है तो नारक मिथ्यादृष्टि जीवराशि उत्पन्न नहीं हो सकती है, इसलिये यहां द्विरूपधारामें अधस्तन विकल्प संभव नहीं है यह कहा । ___अब अष्टरूपमें अधस्तन विकल्प बतलाते हैं- जगश्रेणीके असंख्यातवें भागभूत अवहारकालसे जगश्रेणीके भाजित करने पर वहां जितना प्रमाण आवे उससे जगश्रेणीके गुणित करने पर नारक मिथ्यादृष्टि जीवराशि आती है। उदाहरण–६५५३६ : ३२७६८ = २, ६५५३६४ २ = १३१०७२ । अथवा, विष्कंभसूचीके प्रमाणसे जगश्रेणीके गुणित करने पर नारक मिथ्यादृष्टि जीवराशि आती है। उदाहरण-६५५३६४२% १३१०७२। अथवा, अवहारकालके प्रमाणसे जगश्रेणीके द्वितीय वर्गमूलको भाजित करके जो लब्ध आवे उससे उसी द्वितीय वर्गमूलको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे जगश्रेणीके प्रथम वर्गमूलको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे जगश्रेणीके गुणित करने पर भी नारक मिथ्यादृष्टि जीवराशि आती है। उदाहरण-१६ : ३२७६८ = १. १६४१-२.. २५६४ १३८ = २, ६५५३६४२ = १३१०७२। अथवा, अवहारकालके प्रमाणसे जगश्रेणीके तीसरे वर्गमूलको भाजित करके जो लब्ध आवे उससे उसी तृतीय वर्गमूलको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे जगश्रेणीके द्वितीय वर्गमूलको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे जगश्रेणीके प्रथम वर्गमूलको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे जगश्रेणीके गुणित करने पर नारक मिथ्यादृष्टि जीवराशि आती है। इसप्रकार नीचे भी जानकर कथन करना चाहिये। उदाहरण-४’ ३२७६८ = १. ४४८११२-२०४८. १६४२०४८ - १२८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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