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________________ १, २, १७.] दव्वपमाणाणुगमे णिरयगदिपमाणपरूवणं सेढीए असंखेजदिमागेण अवहारकालेण सेढिं गुणेऊण तेण घणलोगे भागे हिदे मिच्छाइद्विरासी आगच्छदि । तं कधं ? सेढिणा घणलोगे भागे हिदे जगपदरमागच्छदि । पुणो वि भागहारेण जगपदरे भागे हिदे मिच्छाइहिरासी आगच्छदि । अहवा अवहारकालेण सेढिं गुणेऊण घणलोगपढमवग्गमूलमवहरिय तेण तं चेव गुणिदे मिच्छाइहिरासी होदि । एवं हेट्ठा जाणिऊण वत्तव्यं । हेहिमवियप्पो गदो । उवरिमवियप्पो तिविहो, गहिदो गहिदगहिदो गहिदगुणगारो चेदि । तत्थ गहिदं वत्तइस्तामो। णेरइयमिच्छाइहिरासिअवहारकालेण जगपदरसमाणवेरूववग्गं गुणेऊण देण तव्वग्गवग्गे भागे हिदे मिच्छाइहिरासी आगच्छदि । तं कधं ? जगपदरसमाणवेस्ववग्गेण तव्यग्गवग्गे भागे हिदे जगपदरमागच्छदि । पुणो वि अवहारकालेण जगपदरे उदाहरण- ६५५३६३ २५६४ . २, ६५५३६ ४२ = १३१०७२ सा. ना. मि. अब घनाघनमें अधस्तन विकल्प बतलाते हैं- जगश्रेणीके असंख्यातवें भागरूप अवहारकालसे जगश्रेणीको गुणित करके जो लन्ध आवे उससे घनलोकके भाजित करने पर नारक मिथ्यादृष्टि जीवराशि आती है, क्योंकि, जगश्रेणीसे घनलोकके भाजित करने पर जगप्रतर आता है। पुनः भागहारसे जगप्रतरके भाजित करने पर नारक मिथ्यादृष्टि जीवराशि आती है। ६५५३६४३२७६८ = १३१०७२ सा. ना. मि. अथवा, अवहारकालसे जगश्रेणीको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे घनलोकके प्रथम वर्गमलको अपहत करके जो प्रमाण आवे उससे उसी घनलोकके प्रथम वर्गमूलको गुणित करने पर नारक मिथ्यादृष्टि जीवराशि आती है। इसीप्रकार नीचेके स्थानों में जानकर कथन करना चाहिये । इसप्रकार अधस्तन विकल्प समाप्त हुआ। उदाहरण- २५६३ '६५५३६४३२ १ २८, २५६४१२८ % १३१०७२ सा. ना. मि. उपरिम विकल्प तीन प्रकारका है, गृहीत, गृहीतगृहीत और गृहीतगुणकार । उनमेंसे पहले गृहीत उपरिम विकल्पको बतलाते हैं-नारक मिथ्यादृष्टि जीवराशिसंबन्धी अवाहारकालसे जगप्रतरके समान द्विरूपवर्गको गणित करके जो लब्ध आवे उससे उस द्विरूपवर्गके वर्गमें भाग देने पर मिथ्यादृष्टि जीवराशि आती है, क्योंकि, जगप्रतरके समान द्विरूपवर्गका उसके वर्गमें भाग देने पर जगप्रतरका प्रमाण आता है, पुनः अवहारकालका जगमतरमें भाग देने पर नारक मिथ्यादृष्टि जीवराशि आती है। उदाहरण- ४२९४९६७२९६२ = १३१०७२ सा. ना. मि. ४२९४९६७२९६४३२७६८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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