SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 244
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १, २, १७.] दव्वपमाणाणुगमे णिरयगदिपमाणपरूवर्ण [ १५१ एत्थ खंडिद-भाजिद-विरलिद-अवहिदपरूवणाओ पुव्वं व परवेदव्याओ । तत्थ पमाणं वत्तइस्सामो। तं जधा- जगपदरस्स असंखेजदिभागो असंखेज्जाओ सेढीओ। पमाणं गई। केण कारणेण ? सेढीए जगपदरे भागे हिदे सेढी आगच्छदि । सेढिदुभागेण जगपदरे भागे हिदे दोणि सेढीओ आगच्छति । सेढितिभागेण जगपदरे भागे हिदे तिणि सेढीओ आगच्छंति । एवं गंतूग विक्खंभसूचीभजिदसेढीए जगपदरे भागे हिदे असंखेज्जाओ सेढीओ आगच्छंति ति वुत्तं । कारणं गदं । णिरुतिं वत्तइस्सामो। सेढीए असंखेजदिभागेण सेढिम्हि भागे हिदे तत्थागदाणि जत्तियाणि रूवाणि तत्तियाओ सेढीओ। अहवा विक्खंभसूईरूवमेत्ताओ । णिरुत्ती ग़दा । वियप्पो दुविहो, हेद्विमवियप्पो उवरिमवियप्पो चेदि । तत्थ हेहिमवियप्पं वत्तइस्सामो । वेरूवे हेद्विमवियप्पो णत्थि । कारणं पुव्वं व वत्तव्यं । अदुरूवे हेहिमवियप्पं विरलित और अपहृतकी प्ररूपणा पहले के समान करना चाहिये (देखो पृष्ठ ४१, ४२)। अब नारक मिथ्यादृष्टि जीवराशिका प्रमाण बतलाते हैं। वह इसप्रकार है मारक मिथ्यादृष्टि जीवराशिका प्रमाण जगप्रतरके असंख्यातवें भाग है जो असंख्यात जगश्रेणीप्रमाण है। इसप्रकार प्रमाणका वर्णन समाप्त हुआ। उदाहरण-४२९४९६७२९६ ३२७६८ = १३१०७२ = असंख्यातरूप २ जगश्रेणियोंके। शंका-नारक मिथ्यादृष्टि जीवराशिका प्रमाण जो जगप्रतरके असंख्यातवें भाग कहा है वह असंख्यात जगश्रेणीप्रमाण किस कारण से है ? समाधान-जगश्रेणीसे जगप्रतरके भाजित करने पर जगश्रेणी आती है (४२९४९६७२९६६५५३६ = ६५५३६) जगश्रेणीके द्वितीय भागसे जगप्रतरके भाजित करने पर दो जगश्रेणियां आती हैं (४२९४९६७२९६ : ३२७६८ = १३१०७२)। जगश्रेणीके तीसरे भागसे जगप्रतरके भाजित करने पर तीन जगश्रेणियां आती हैं (४२९४९६७२९६ : २१८४५३ = १९६६०८)। इसप्रकार उत्तरोत्तर जाकर विष्कंभसूचीसे भाजित जगश्रेणीका जगप्रतरमें भाग देने पर असंख्यात जगश्रेणियां लब्ध आती हैं, ऐसा कहा है। इसप्रकार कारणका वर्णन समाप्त हुआ। उदाहरण-६५५३६ : २= ३२७६८, ४२९४९६७२९६ : ३२७६८ = १३१०७२ बराबर असंख्यात जगश्रेणियोंके। - अब निरुक्तिका कथन करते हैं-जगश्रेणीके असंख्यातवें भागसे जगश्रेणीके भाजित करने पर वहां जो प्रमाण लब्ध आवे उतनी जगश्रेणियां जगप्रतरके असंख्यातवें भागमें ली हैं। अथवा, विष्कंभसूचीका जितना प्रमाण है उतनी जगश्रेणियां जगप्रतरके असंख्यातवें भागमें ली है। इसप्रकार निरुक्तिका कथन समाप्त हुआ। उदाहरण-जगश्रेणीका असंख्यातवां भाग ३२७६८, ६५५३६-३२७६८ = २ जगश्रोणियां । अथवा, विष्कंभसूची २, अतएव विष्कंभसूची २ प्रमाण जगणियां । विकल्प दो प्रकारका है, अधस्तन विकल्प और उपरिम विकल्प । उनमेंसे पहले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy