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१, २, १७.] दव्वपमाणाणुगमे णिरयगदिपमाणपरूवणं
[ १४१ कारणेण ? घण-उवरिमवग्गेण घणाघणे भागे हिदे घणंगुलो आगच्छदि । पुणो वि पदरंगुलेण घणंगुले भागे हिदे सूचिअंगुलो आगच्छदि । पुणो वि विदियवग्गमूलेण सूचिअंगुले भागे हिदे विक्खंभसूची आगच्छदि । एवमागच्छदि ति कट्ट गुणेऊण भागग्गहणं कदं। तस्स भागहारस्स अद्धच्छेदणयमेत्ते रासिस्स अद्धच्छेदणए कदे वि विक्खंभसूची आगच्छदि। गहिदो गदो। सूचिअंगुलस्स असंखेज्जदिभागेण घणंगुलपढमवग्गमूलस्स असंखेज्जदिभागेण 'घणाघणविदियवग्गमूलस्स असंखेज्जदिभागेण च विक्खंभसूचिपमाणेण गहिदगहिदो गहिदगुणगारो च पुत्वं व वत्तव्यो।
संपहि णेरइयामिच्छाइद्विरासिस्त भागहारुप्पायणविहिं वत्तइस्सामो । सुत्ते अवुत्तो भागहारो कधमुप्पाइज्जदे ? ण, सुत्तवुत्तविक्खंभसूईदो तदुप्पत्तिसिद्धीदो। तं जहाप्रमाण आता है, क्योंकि, घनांगुलके उपरिम वर्गसे घनाघनांगुलके भाजित करने पर घनांगुल आता है। पुनः प्रतरांगुलसे घनांगुलके भाजित करने पर सूच्यंगुल आता है। पुनः सूच्यंगुलके द्वितीय वर्गमूलसे सूच्यंगुल के भाजित करने पर विष्कंभसूची आती है । इसप्रकार विष्कंभसूची आती है, ऐसा समझकर पहले गुणा करके अनन्तर भागका ग्रहण किया। उदाहरण-(२१-२२२३८-३० = २ विष्कंभसूची.
२x२x२० उक्त भागहारके जितने अर्धच्छेद हों उतनीवार उक्त भज्यमान राशिके अर्धच्छेद करने पर भी विष्कंभसूचीका प्रमाण आता है। इसप्रकार गृहीत उपरिम विकल्पका वर्णन समाप्त हुआ।
उदाहरण-२१ के अर्धच्छेद ११ होते हैं; अतः इतनीवार २१२ के अर्धच्छेद करने पर
२ = २ = २ प्रमाण विष्कंभसूची आ जाती है।
सूच्यंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण विष्कंभसूचीसे, घनांगुलके प्रथम वर्गमूलके असंख्यातवें भागप्रमाण विष्कंभसूचीसे और घनाधनांगुलके द्वितीय वर्गमूलके असंख्यातवें भागप्रमाण विष्कंभसूचीसे गृहीतगृहीत और गृहीतगुणकारका कथन पहलेके समान करना चाहिये। , अब नारक मिथ्यादृष्टि जीवराशिके भागहारके उत्पन्न करनेकी विधिको बतलाते हैं
शंका-भागहारका कथन सूत्र में नहीं किया है, फिर यहां वह कैसे उत्पन्न किया जा रहा है?
समाधान-नहीं, क्योंकि, सूत्रोक्त विष्कंभसूचीसे उक्त भागहारकी उत्पत्ति बन जाती है। वह इसप्रकार है
१ प्रतिषु 'पुणो घण-' इति पाठः ।
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