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________________ १५०] छक्खंडागमे जीवट्ठाण [१, २, १७. अद्धच्छेदणयमेत्तमेलावणविहाणं जाणिऊण वत्तव्यं । अहरूवे वत्तइस्सामो। विदियवग्गमूलेण पदरंगुलं गुणेऊण तेण घणंगुले भागे हिदे विक्खंभसूची आगच्छदि । केण कारणेण ? पदरंगुलेण घणंगुले भागे हिदे सूचिअंगुलमागच्छदि । पुणो वि विदियवग्गमूलेण सूचिअंगुले भागे हिदे विखंभसूची आगच्छदि । एवमागच्छदि त्ति कट्ट गुणेऊण भागग्गहणं कदं । तस्स भागहारस्स अद्धच्छेदणयमेत्ते रासिस्स अद्धच्छेदणए कदे वि विक्खंभसूची आगच्छदि । एवं संखेज्जासंखेज्जाणतेसु णेयव्वं । घणाघणे वसइस्सामो । विदियवग्गमूलेण पदरंगुलं गुणेऊण तेण गुणिदरासिणा घणंगुलउवरिमवग्गं गुणेऊण तेण घणाघणे भागे हिदे विक्खंभसूची आगच्छदि । केण जाना चाहिये। यहां पर समस्त अर्धच्छेदोंके मिलाने की विधिको जानकर कथन करना चाहिये। उदाहरण-२ के अर्धच्छेद ५ होते हैं, अतः इतनीवार २ के अर्धच्छेद करने पर २ -२ = २ प्रमाण विष्कंभसूची आ जाती है। अब अष्टरूपमें गृहीत उपरिम विकल्पको बतलाते हैं-सूच्यंगुलके द्वितीय वर्गमूलसे प्रतरांगुलको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे घनांगुलके भाजित करने पर विष्कंभसूचीका प्रमाण आता है, क्योंकि, प्रतरांगुलसे घनांगुलके भाजित करने पर सूच्यंगुल आता है । पुनः सूच्यंगुलके द्वितीय वर्गमूलसे सूच्यंगुलके भाजित करने पर विष्कंभसूचीका प्रमाण आता है। इसप्रकार विष्कंभसूची आती है, ऐसा समझकर पहले गुणा करके अनन्तर भागका ग्रहण किया। उदाहरण- २ = २ विष्कंभसूची. २४२ उक्त भागहारके जितने अर्धच्छेद हों उतनीवार उक्त भज्यमान राशिके अर्धच्छेद करने पर भी विष्कंभसूचीका प्रमाण आ जाता है। इसीप्रकार संख्यात, असंख्यात और अनन्त स्थानों में ले जाना चाहिये। उदाहरण–२ के अर्धच्छेद ३ होते हैं, अतः इतनीवार २' के अर्धच्छेद करने पर २ = २ = २ प्रमाण विष्कभसूची आ जाती है। अब धनाधनमें गृहीत उपरिम विकल्प बतलाते हैं-- सूच्यंगुलके द्वितीय वर्गमूलसे प्रतरांगुलको गुणित करके जो गुणित राशि लब्ध आवे उससे घनांगुलके उपरिम वर्गको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे घनाघनांगुलके भाजित करने पर विष्कंभसूचीका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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