SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 230
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १, २, १७.] दव्वपमाणाणुगमे णिरयगदिपमाणपरूवणं [१३७ विक्खंभसूई हवदि । अट्ठरूवे वत्तइस्सामो । अंगुलविदियवग्गमूलेण पढमवग्गमूलं गुणेऊण घणंगुलपढमवग्गमूले भागे हिदे विक्खंभसूची आगच्छदि । केण कारणेण ? अंगुलपढमवग्गमूलेण घणंगुलपढमवग्गमूले भागे हिदे सूचिअंगुलो आगच्छदि। पुणो तमंगुलविदियवग्गमूलेण भागे हिदे विक्खंभसूची आगच्छदि। एत्थ विउणादिकरणं वत्तइस्सामो । अंगुलपढमवग्गमूलेण घणंगुलपढमवग्गमूले भागे हिदे सूचिअंगुलो आगच्छदि । विगुणिदपढमवग्गमूलण धणंगुलपढमवग्गमूले भागे हिदे सूचिअंगुलस्स दुभागो आगच्छदि । तिगुणिदपढमवग्गमूलेण घणंगुलपढमवग्गमूले भागे हिदे सूचिअंगुलस्स तिभागो आगच्छदि । अब अष्टरूपमें अधस्तन विकल्प बतलाते हैं- सूच्यंगुलके द्वितीय वर्गमूलसे प्रथम वर्गमूलको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे धनांगुलके प्रथम वर्गमूलके भाजित करने पर विष्कंभसूचीका प्रमाण आता है, क्योंकि, सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमूलसे घनांगुलके प्रथम वर्गमूलके भाजित करने पर सूच्यंगुलका प्रमाण आता है। पुनः उसे सूच्यंगुलके द्वितीय वर्गमूलसे भाजित करने पर विष्कंभसूचीका प्रमाण आता है। उदाहरण—सूच्यंगुलका घन (६) = २, धनांगुलका प्रथम वर्गमूल २' । २ = २ विष्कंभसूची. २x२ अब यहां द्विगुणादिकरण विधिको बतलाते हैं- सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमूलसे घना गुलके प्रथम वर्गमूलके भाजित करने पर सूच्यंगुल आता है द्विगुणित सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमूलसे धनांगुलके प्रथम वर्गमूलके भाजित करने पर सूच्यंगुलका दूसरा २२४२ भाग आता है ( ३ २ ) । त्रिगुणित सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमूलसे घनांगुलके प्रथम २x२ २ . X३ वर्गमूलके भाजित करने पर सूच्यंगुलका तीसरा भाग आता है। आता है। (-२४२)। २४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy