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________________ १३८ ] छक्खंडागमे जीवाणं [ १, २, १७. एदेण कमेण दव्वं जाव सूचिअंगुलपढमवग्गमूलस्स गुणगारो विदियवग्गमूलमेत्तं पत्ता त्ति । पुणो तेण सूचिअंगुलविदियवग्गमूलेण गुणिदपढमवग्गमूलेण घणंगुलपढमवग्गमूले भागे हिदे विदियवग्गमूलोवट्टियसूचिअंगुलो आगच्छदि । सो चेव विक्खंभसूची । घणाघणे वत्तइस्समो । अंगुलविदियवग्गमूलेण पढमवग्गमूलं गुणेऊण तेण घणंगुलविदियवज्गमूलं गुणेऊण तेण घणाघणविदियवग्गमूले भागे हिदे विक्खभसूई आगच्छदि । केण कारणेण ? घणगुलविदियवग्गमूलेण घणाघणंगुलविदियवग्गमूले भागे हिदे घणंगुलपढमवग्गमूलमागच्छदि । वि सूचि अंगुल पढमवग्गमूलेण घणंगुलपढमवग्गमूले भागे हिदे सूचिअंगुलो आगच्छदि । पुणो वि विदियवग्गमूलेण सूचिअंगुले भागे हिदे विक्खंभसूची आगच्छदि । एवमागच्छदित्ति कट्टु गुणेऊण भागग्गहणं कदं । एवं हैट्ठिमवियप्पो समत्तो । उवरिमवियप्पो तिविहो, गहिदो गहिदगहिदो गहिदगुणगारो चेदि । तत्थ इसप्रकार जबतक सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमूलका गुणकार द्वितीय वर्गमूलके प्रमाणको प्राप्त होवे तबतक इसी क्रमसे ले जाना चाहिये । पुनः उस सूच्यंगुलके द्वितीय वर्गमूल से सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमूलको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे घनांगुल के प्रथम वर्गमूलके भाजित करने परसूच्यंगुलके द्वितीय वर्गमूलसे भाजित सूच्यंगुल आता है, और वही विष्कंभसूची है । उदाहरण - १ Jain Education International २x२ = २x२ २ = २ विष्कंभसूची. अब घनाघनमें अघस्तन विकल्प बतलाते हैं- सूच्यंगुलके द्वितीय वर्गमूलसे सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमूलको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे घनांगुलके द्वितीय वर्गमूलको गुणित करके जो लब्ध आवे उसका घनाघनांगुलके द्वितीय वर्गमूल में भाग देने पर विष्कंभसूचीका प्रमाण आता है, क्योंकि, घनांगुलके द्वितीय वर्गमूलका antaries द्वतीय वर्गमूल में भाग देने पर घनांगुलका प्रथम वर्गमूल आता है । पुनः सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमूलका घनांगुलके प्रथम वर्गमूलमें भाग देने पर सूच्यंगुल आता है । पुनः सूच्यंगुलके द्वितीय वर्गमूलका सूच्यंगुलमें भाग देने पर विष्कंभसूचीका प्रमाण आता है । इसप्रकार विष्कंभसूची आती है, ऐसा समझकर पहले गुणा करके अनन्तर भागका ग्रहण किया । इसप्रकार अधस्तन विकल्प समाप्त हुआ । उदाहरण – सूच्यंगुलका घनाघन ( २ ) = २१ २३ सूच्यंगुलके घनाघनका द्वितीय २ विष्कंभसूची. वर्गमूल २ = २ २x२x२ उपरम विकल्प तीन प्रकारका है, गृहीत, गृहीतगृहीत और गृहीतगुणकार । उनमें For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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