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छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, २, १५.
परूवणा सा आइरियपरंपराए अणाइणिहणत्तणेण आगदा त्ति जाणावण अणुवादरगहणं । सेसगदिणिवारणडं णिरयगदिग्गहणं कदं । सेसगदीओ मोत्तूण पुव्त्रं णिरयगदी चेव किमहं बुच्चदे ? ण णेरइयदंसणेण समुप्पण्णसज्झसस्स भवियस्स दसलक्खणे धम्मेणिश्चलसरुवेण बुद्धी चिट्ठदित्ति काऊण पुव्वं तप्परूवणादो । रइएस त्ति किमहं ? ण, तत्थतणखेत्तकालप डिसेहफलत्तादो । मिच्छाइट्टिग्गहणं किमहं ? सेसगुणड्डाणणियत्तणङ्कं । दव्वपमाणेणेत्ति किमहं ? खेत्तकालणिवारणङ्कं । केवडिया इदि पुच्छा किंफला ? जिणाणमत्थकत्तारत्तपदुप्पायणमुहण अप्पणो कत्तारत्तपडिसेहफला । एवं गोदमसामिणा पुच्छिदे महावीरभयवंतेण केवलणाणेणावगदतिकालगोयरासेसपयत्थेण असंखेजा इदि तेसिं प्रमाणं परूविदं । एवमुत्ते संखेज्जाणताणं पडिणियत्ती । तं पुण असंखेञ्जमणेयवियप्पं । तं जहाअनादिनिधनरूपसे आई हुई है, इसका ज्ञान करानेके लिये सूत्रमें अनुवाद पदका ग्रहण किया है। शेष गतियोंका निराकरण करनेके लिये सूत्रमें नरकगति पदका ग्रहण किया है । शंका- शेष गतियोंके कथनको छोड़कर पहले नरकगतिका ही वर्णन क्यों किया जा रहा है ?
समाधान
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- नहीं, क्योंकि, नारकियोंके स्वरूपका ज्ञान हो जानेसे जिसे भय उत्पन्न हो गया है ऐसे भव्य जीवको दशलक्षण धर्ममें निश्चलरूपसे बुद्धि स्थिर हो जाती है, ऐसा समझकर पहले नरकगतिका वर्णन किया ।
शंका- सूत्र में ' णेरइपसु ' यह पद किसलिये दिया गया है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, नरकगतिसंबन्धी क्षेत्र और कालका प्रतिषेध करना उक्त पदका फल है ।
शंका- सूत्रमें 'मिच्छाइट्ठी ' इस पदका ग्रहण किसलिये किया है ?
समाधान - शेष गुणस्थानोंके निवारण के लिये मिथ्यादृष्टि पदकां ग्रहण किया है । शंका – सूत्र में 'द्रव्यप्रमाणसे' ऐसा पद क्यों दिया है ?
समाधान - क्षेत्र और कालका प्रतिषेध करनेके लिये ग्रहण किया है ।
शंका- कितने हैं ' इस पृच्छाका क्या फल है ?
समाधान - जिनेन्द्रदेव ही अर्थकर्ता हैं, इस बातके प्रतिपादन द्वारा अपने (भूतबलिके) कर्तापनका निषेध करना उक्त पृच्छाका फल है । नरकगतिमें मिथ्यादृष्टि नारकी कितने हैं, इसप्रकार गौतमस्वामीके द्वारा पूछने पर जिन्होंने केवलज्ञानके द्वारा त्रिकालके विषयभूत समस्त पदार्थोंको जान लिया है, ऐसे भगवान् महावीरने 'असंख्यात है' इसप्रकार नारकियों के प्रमाणका प्ररूपण किया ।
'नरक में मिथ्यादृष्टि नारकी असंख्यात है' इसप्रकार कथन करने पर संख्यात और अनतकी निवृत्ति हो जाती है । वह असंख्यात अनेक प्रकारका है । आगे उसीका स्पष्टीकरण करते हैं
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' द्रव्यप्रमाणसे' पदका
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