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________________ १२०] छक्खंडागमे जीवाणं [१, २, १४. कालादो असंखेज्जावलियम्भंतर-असंजदसम्माइटि-उवक्कमणकालस्स असंखेज्जगुणत्तादो। अहवा दोण्हं पि गुणट्ठाणाणमुक्क्कमणकालमणवेक्खिय असंखेज्जगुणत्तस्स कारणमण्णहा वुच्चदे । तं जहा, समयं पडि सम्मामिच्छत्तं पडिवज्जमाणरासीदो वेदगसम्मत्तं पडिवज्जमाणरासी असंखेज्जगुणो। जेण वेदगसम्माइट्ठीणमसंखेज्जदिभागो मिच्छत्तं गच्छदि । तस्स वि असंखेजदिभागो सम्मामिच्छत्तं गच्छदि । 'सव्वकालमवविदरासीण क्याणुसारिणा आएण होदव्वं ' इदि णायादो असंजदसम्माइटिरासीदो णिप्फिडिदमेत्ता चेव अट्ठवीससंतकम्मिया मिच्छाइटिणो वेदगसम्मत्तं पडिवज्जति । तम्हा सम्मामिच्छाइट्ठिदव्वादो असंजदसम्माइटिदबमसंखेज्जगुणमिदि सिद्धं । एदं वक्खाणमेत्थ पधाणमिदि गेण्हिदव्यं । को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । एत्थ वि तीहि पयारेहि गुणगारो साहेयव्यो। पलिदोवममसंखेज्जगुणं । को गुणगारो ? सग-अवहार सम्यग्दृष्टिका उपक्रमण काल असंख्यातगुणा है। अथवा, पूर्वोक्त दोनों ही गुणस्थानोंके उपक्रमण कालकी अपेक्षा न करके सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंसे असंयतसम्यग्दृष्टि असंख्यातगुणे हैं, इसका कारण दूसरे प्रकारसे कहते हैं। वह इसप्रकार है- प्रत्येक समयमें सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाली राशिसे वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त होनेवाली राशि असंख्यातगुणी है । तथा जिस कारणसे वेदकसम्यग्दृष्टियोंका असंख्यातवां भाग मिथ्यात्वको प्राप्त होता है और उसका भी असंख्यातवां भाग सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त होता है। तथा 'सर्वदा अवस्थित राशियोंके व्ययके अनुसार ही आय होना चाहिये' इस न्यायके अनुसार मोहनीयके अट्ठावीस कर्मोकी सत्ता रखनेवाले जितने जीव असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशिमेंसे निकलकर मिथ्यात्वको प्राप्त होते हैं उतने ही मिथ्यादृष्टि वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त होते हैं, इसलिये सम्यग्मिथ्यादृष्टिके द्रव्यसे असंयतसम्यग्दृष्टिका द्रव्य असंख्यातगुणा है, यह सिद्ध हो जाता है। यह व्याख्यान यहां पर प्रधान है ऐसा समझना चाहिये । गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है । यहां पर भी पूर्वोक्त तीनों प्रकारोंसे गुणकार साध लेना चाहिये। उदाहरण-असंयतसम्यग्दृष्टि द्रव्य १६३८४, १६३८४ : १६ = १०२४ गुणकार १६४१०२४ =१६३८४ असंयतसम्यग्दृष्टि द्रव्य । अथवा, १६३८४४०९६ = ४ गुणकार; ४०९६४४ % १६३८४ असंयतसम्यग्दृष्टि द्रव्य । अथवा, १६ ४ = ४ गुणकार; ४०९६४ ४ = १६३८४ असंयतसम्यग्दृष्टि द्रव्य । अथवा, ४०९६x४ = १६३८४, ६५५३६ १६३८४ = ४ गणकार, ४०९६४४ = १६३८४ असंयतसम्यग्दृष्टि द्रव्य । असंयतसम्यग्दृष्टिके द्रव्यसे पल्योपम असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? अपना (असंयतसम्यग्दृष्टिका) अवहारकाल गुणकार है। उदाहरण–१६३८४४४ - ६५५३६ पस्योपम । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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