SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १, २, १४.] दवपमाणाणुगमे ओघ-अप्पबहुत्तपरूवणं [११९ मणकालादो संजदासंजद-उवक्कमणकालो संखेज्जगुणो हवदि तो वि संजदासंजददव्वादो सासणसम्माइहिदव्यमसंखेज्जगुणमेव । कुदो ? सम्मत्त-चारित्तविरोहिसासणगुणपरिणामेहिंतो समयं पडि असंखेज्जगुणाए सेढीए कम्मणिज्जरणहेउभूदसंजमासंजमपरिणामो अइदुल्लहो त्ति काऊण समयं पडि संजमासंजमं पडिवज्जमाणरासीदो समयं पडि सासणगुणं पडिवज्जमाणरासी असंखेज्जगुणो हवदि त्ति । सासणसम्माइद्विरासीदो सम्मामिच्छाइदिव्वं संखेज्जगुणं, सासणसम्मादिहि-छ-आवलि-अब्भंतर-उवक्कमणकालादो अंतोमुहुत्तमेत्त-सम्मामिच्छाइटि-उवक्कमणकालस्स संखेज्जगुणत्तादो । को गुणगारो ? संखेज्जसमया वा । एत्थ वि रासिणा रासिं भागे हिंदे गुणगाररासी आगच्छदि । अवहारकालेण अवहारकाले भागे हिदे गुणगाररासी आगच्छदि । उवरिमरासि-अवहारकालण हेहिमरासिं गुणेऊण पलिदोवमे भागे हिदे गुणगाररासी आगच्छदि । सम्मामिच्छाइट्टिदव्वस्सुवरि असंजदसम्माइटिदव्वमसंखेज्जगुणं । कुदो ? सम्मामिच्छाइट्ठि-उवक्कमण समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, यद्यपि सासादनसम्यग्दृष्टिके उपक्रमण कालसे संयतासंयतका उपक्रमणकाल संख्यातगुणा है, तो भी संयतासंयत द्रव्यप्रमाणसे सासादनसम्यग्दृष्टि द्रव्यप्रमाण असंख्यातगुणा ही है, क्योंकि, सम्यक्त्व और चारित्रके विरोधी सासादनगुणस्थानसंबन्धी परिणामोंसे प्रत्येक समयमें असंख्यातगुणी श्रेणीरूपसे कर्मनिर्जराके कारणभूत संयमासंयमरूप परिणाम अत्यन्त दुर्लभ हैं, इसलिये प्रत्येक समयमें संयमासंयमको प्राप्त होनेवाली जीवराशिकी अपेक्षा प्रत्येक समयमें सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानको प्राप्त होनेवाली जीवराशि असंख्यातगुणी है। सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशिसे सम्यग्मिथ्यादृष्टि द्रव्यका प्रमाण संख्यातगुणा है, क्योंकि, सासादनसम्यग्दृष्टिके छह आवलीके भीतर होनेवाले उपक्रमण कालसे । दृष्टि गुणस्थानका अन्तर्मुहूर्तप्रमाण उपक्रमण काल संख्यातगुणा है । गुणकार क्या है? संख्यात समय गुणकार है। यहां भी एक राशिका दूसरी राशिमें भाग देने पर गुणकार राशि आ जाती है। अथवा, अवहारकालसे अवहारकालके भाजित करने पर गुणकार राशि आ जाती है। अथवा, उपरिम राशिके अवहारकालसे अधस्तन राशिको गुणित करके जो लब्ध आवे उसका पल्योपममें भाग देने पर गुणकार राशि आ जाती है। * उदाहरण-सम्यग्मिथ्यादृष्टि द्रव्य ४०९६, ४०९६ : ३२% १२८ गुणकार; ३२४ १२८ =४०९६ सम्यग्मिथ्यादृष्टि द्रव्य । अथवा, ४०९६:२०४८-२ गुणकार, २०४८४२४०९६ सम्य. द्रव्य । अथवा, ३२१६२ गुणकार। २०४८ x २ = ४०९६ । अथवा, २०४८४ १६ = ३२७६८, ६५५३६ : ३२७६८ =२ गुणकार, २०४८x२= ४०९६। सम्यग्मिथ्यादृष्टिके द्रव्यके ऊपर असंयतसम्यग्दृष्टिका द्रव्य उससे असंख्यातगुणा है, क्योंकि, सम्यग्मिथ्यादृष्टिके उपक्रमण कालसे असंख्यात आवलियोंके भीतर होनेवाला असंयत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy