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________________ ११८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [ १, २,१४. संजदासजद-अवहारकाले भागे हिदे गुणगारो रासी आगच्छदि । अहवा उवरिमरासिअवहारकालेण हेहिमरासिं गुणेऊण पलिदोवमे भागे हिदे गुणगाररासी आगच्छदि। एत्थ विगुणादिकरणं कादव्वं । तं जहा- संजदासंजदरासिपमाणेण पलिदोवमे भागे हिदे संजदासंजद-अवहारकालो आगच्छदि । विउणिदसंजदासंजददव्यपमाणेण पलिदोवमे भागे हिदे संजदासंजद-अवहारकालस्स दुभागो आगच्छदि । तिगुणिदसंजदासंजदरासिमा पलिदोवमे भागे हिदे तस्सेव अवहारकालस्स तिभागो आगच्छदि । एदेण कमेण णेदव्यं जाव संजदासंजदरासिस्स गुणगारो सासणसम्माइट्टि अवहारकालमत्तं पत्तो ति । तदा सासणसम्माइट्टि-अवहारकालो' संजदासंजद-अवहारकालस्स असंखेज्जदिभागो आगच्छदि। एदेण पुव्वुत्तगुणगारो साहेयव्वो। संजदासंजदगुणस्स उक्कस्सकालो संखेज्जाणि वस्साणि । सासणसम्माइटिगुणस्स उक्कस्सकालो छ आवलियाओ। एदेसिमुवक्कमणकालादी अप्पप्पणो गुणकालपडिरूवा हवंति ति सासणसम्माइट्ठिदव्यादो संजदासंजददव्वेण संखेज्जगुणेण होदव्वमिदि ? ण एस दोसो, जदि वि सासणसम्माइट्ठि-उवक्क गुणकार राशिका प्रमाण आता है। अथवा, उपरिम राशिके अवहारकालसे अधस्तन राशिको गणित करके जो लब्ध आवे उससे पल्योपमके भाजित करने पर गुणकार राशि आती है। उदाहरण-सासादन द्रव्य २०४८, २०४८ १२८ =१६ गुणकार, १२८४१६/२०४८ सासादन द्रव्यप्रमाण। अथवा, १२८:३२ =४ गुणकार, ५१२४४%२०४८ सा. । अथवा, ५१२४३२%१६३८४, ६५५३६:१६३८४ =४ गुणकार, ५१२४४ =२०४८ सा. । यहां पर द्विगुणादिकरण विधि करना चाहिये । वह इसप्रकार है-संयतासंयत राशिके प्रमाणसे पल्योपमके भाजित करने पर संयतासंयतका अवहारकाल आता है (६५५३६:५१२% १२८)। द्विगुणित संयतासंयत द्रव्यके प्रमाणसे पल्योपमके भाई पर संयतासंयतके अवहारकालका दूसरा भाग आता है (६५५३६ : १०२४ = ६४)। त्रिगुणित संयतासंयत राशिसे पल्योपमके भाजित करने पर संयतासंयतके अवहारकालका तीसरा भाग आता है (६५५३६ १५३६ = ४२५१२ )। इसी क्रमसे तबतक ले जाना चाहिये जबतक संयतासंयत राशिका गुणकार सासादनसम्यग्दृष्टिके अवहारकालके प्रमाणको प्राप्त हो जावे । उस समय सासादनसम्यग्दृष्टिका अवहारकाल संयतासंयतके अवहारकालका असंख्यातवां भाग आता है। इससे पूर्वोक्त गुणकार साध लेना चाहिये (१२८ : ३२ = ४ गुणकार)। शंका-संयतासंयत गुणस्थानका उत्कृष्टकाल संख्यात वर्ष है और सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानका उत्कृष्टकाल छह आवली है। अतः इनके उपक्रमणकाल आदिक अपने अपने गुणस्थानके कालके अनुसार होते हैं, इसलिये सासादनसम्यग्दृष्टिके द्रव्यप्रमाणसे संयता. संयत द्रव्यप्रमाण संख्यातगुणा होना चाहिये? १ प्रतिषु कालमत्त ' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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