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________________ १, २, १४.] दव्वपमाणाणुगमे ओघ-अप्पबहुत्तपरूवणं [ ११७ गुणो । को गुणगारो ? संखेज्जसमया वा। को पडिभागो ? सम्मामिच्छाइटि-अवहारकालो। संजदासंजद अवहारकालो असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? सग-अवहारस्स असंखेज्जदिभागो । को पडिभागो ? सासणसम्माइटि-अवहारकालो । तदो संजदासंजददव्यं असंखेज्जगुणं । को गुणगारो ? सगदव्यस्स असंखेज्जदिभागो। को पडिभागो ? सग-अवहारकालो । अहवा पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो असंखेज्जाणि पलिदोवमपढमवग्गमूलाणि । को पडिभागो ? सग अवहारकालवग्गो। संजदासंजददव्यस्सुवरि सासणसम्माइट्ठिदव्यं असंखेज्जगुणं । को गुणगारो ? सगदव्वस्स असंखेज्जदिभागो। को पडिभागो ? संजदासंजददव्यमवहारकालो । अहवा सासणसम्माइहि-अवहारकालेण उदाहरण-सम्यग्मिथ्यादृष्टि अवहारकाल १६, १६ : ४ = ४ गुणकार; ४४४ = १६ सम्यग्मिथ्यादृष्टि अवहारकाल। सम्यग्मिथ्याष्ट्रिके अवहारकालसे सासादनसम्यग्दृष्टिका अवहारकाल संख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? संख्यात समय । प्रतिभाग क्या है ? सम्यग्मिथ्यादृष्टिका अवहारकाल प्रतिभाग है। उदाहरण-सासादनसम्यग्दृष्टि अवहारकाल ३२, ३२:१६%२ गुणकार; १६४२= ३२ सासादनसम्यग्दृष्टि अवहारकाल । सासादनसम्यग्दृष्टिके अवहारकालसे संयतासंयतका अवहारकाल असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? अपने अवहारकालका असंख्यातवां भाग गुणकार है। प्रतिभाग क्या है ? सासादनसम्यग्दृष्टिका अवहारकाल प्रतिभाग है। उदाहरण-संयतासंयत अवहारकाल १२८; १२८:३२ = ४ गुणकार; ३२४ ४ = १२८ संयतासंयत अवहारकाल। संयतासंयतके अवहारकालसे संयतासंयत द्रव्यप्रमाण असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? अपने द्रव्यका असंख्यातवां भाग गुणकार है। प्रतिभाग क्या है ? अपना (संयतासंयतका) अवहारकाल प्रतिभाग है। अथवा, पल्योपमका असंख्यातवां भाग गुणकार है जो पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है। प्रतिभाग क्या है ? अपने (संयतासंयतके) अवहारकालका वर्ग प्रतिभाग है। उदाहरण-संयतासंयत द्रव्य ५१२. ५१२ : १२८ = ४ गुणकार; १२८४४ =५१२ संयतासंयत द्रव्य । अथवा, १२८४१२८ = १६३८४,६५५३६१६३८४ = ४ गुणकार। संयतासंयतके प्रमाणके ऊपर सासादनसम्यग्दृष्टिका द्रव्यप्रमाण संयतासंयतके द्रव्यसे असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? अपने (सासादनके) द्रव्यका असंख्यातवां भाग गुणकार है। प्रतिभाग क्या है ? संयतासंयतके द्रव्यप्रमाणका अवहारकाल प्रतिभाग है। अथवा, सासादनसम्यग्दृष्टिके अवहारकालसे संयतासंयतके अवहारकालको भाजित करने पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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