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________________ ११४ ] छक्खंडागमे जीवद्वाणं [ १, २, १४. संपहि अवगदसव्वपमाणस्स सिस्सस्स एत्थेव रासीणमप्पबहुत्तं भणिस्सामोअमे अणियोगद्दारे एदं सुत्तगारो भणिस्सदि त्ति पुणरुत्तदोसो भवदिति णासंकणिज्जं, तस्स पडिबुद्ध सिस्स विसयत्तादो । अप्पडिबुद्धसिस्से अस्सिऊण सदवारपरूवणं पिण दोसकारणं भवदि । तत्थ अप्पा बहुगं दुविहं, सत्थाणप्पा बहुगं सव्वपरस्थाण पाहु चेदि । एत्थ मिच्छाइडिस्स सत्थाणप्पाबहुगं णत्थि । किं कारणं ? जेण मिच्छाट्ठिरासीदो ध्रुवरासी अब्भहिओ जादो । तत्थ ताव सासणसम्माइ डिस्स सत्याणप्पा बहुअं वत्तइस्लामो । तं जहा, सव्वत्थोवो अवहारकालो तस्सेव दव्वमसंखेज्जगुणं को गुणगारो ? सगदव्वस्त असंखेजदिभागो । को पडिभागो १ सग - अवहारकालो । अधवा गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो असंखेजाणि पलिदोवमपदमवरगमूलाणि । को पडिभागो ? सगअवहारकालवग्गो । एत्थ पडिभागणिमित्तं दुगुणादिकरणं अब जिसने संपूर्ण जीवराशिके प्रमाणको जान लिया है ऐसे शिष्य के लिये यहीं पर जीवराशिका अल्पबहुत्व बतलाते हैं शंका- सूत्रकार आठवें अनुयोगद्वार में इसका कथन करेंगे ही, इसलिये यहां पर उसका कथन करने से पुनरुक्त दोष होता है ? समाधान - ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिये, क्योंकि, वह पुनरुक्तिदोषविचार प्रतिबुद्ध शिष्यका ही विषय है । किन्तु जो शिष्य अप्रतिबुद्ध है उसकी अपेक्षा सौवार प्ररूपण करना भी दोषका कारण नहीं है । अल्पबहुत्व दो प्रकारका है, स्वस्थान अल्पबहुत्व और सर्वपरस्थान अल्पबहुत्व | ओघप्ररूपणा में मिथ्यादृष्टि जीवराशिका स्वस्थान अल्पबहुत्व नहीं पाया जाता । शंका- इसका क्या कारण है ? समाधान - क्योंकि, मिथ्यादृष्टि जीवराशिसे ध्रुवराशि बड़ी है । अब पहले सासादनसम्यग्दृष्टि राशिका स्वस्थान अल्पबहुत्व बतलाते हैं। वह इसप्रकार है- सासादनसम्यग्दृष्टिका अवहारकाल सबसे स्तोक है । उसीका द्रव्य अवहारकालसे असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? अपने (सासादन संबन्धी ) द्रव्यका असंख्यातवां भाग गुणकार है । प्रतिभाग क्या है ? अपना ( सासादनसंबन्धी ) अवहारकाल प्रतिभाग है । अर्थात् अवहारकालका सासादनसम्यग्दृष्टिसंबन्धी द्रव्यमें भाग देने पर जो लब्ध आवे उसको अवहारकालसे गुणित करने पर सासादन सम्यग्दृष्टि जीवराशि होती है । अथवा, गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है जो पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है । प्रतिभाग क्या है ? अपने अवहारकालका वर्ग प्रतिभाग है । उदाहरण - सासादन द्रव्य २०४८, अवहारकाल ३२, २०४८ : ३२ = ६४ गुणकार, प्रतिभाग ३२, पल्योपम ६५५३६, अवहारकालका वर्ग ३२× ३२ = १०२४ प्रतिभाग; ६५५३६ ÷ १०२४ = ६४ गुणकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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