________________
११२)
छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, २, १४. पुणो सम्मामिच्छाइद्विपमुहरासिणा असंजदसम्माइट्ठिरासिमावट्टिय रूवाहियकदरासिस्स असंजदसम्माइहिपमुहरासिं समखंडं करिय दिण्णे रूवं पडि वार सगुणट्ठाणरासिपमाणं पावदि । तत्थ बहुभागा असंजदसम्माइद्विरासिपमाणं होदि। पुणो एक्कारसगुणट्ठाणरासिणा सम्मामिच्छाइद्विरासिमोवट्टिय लद्धं रूवाहियं विरलेऊण चारसगुणहाणरासिं समखंडं करिय दिण्णे रूवं पडि एकारसगुणहाणरासिपमाणं पावदि । तत्थ बहुभागा सम्मामिच्छाइद्विरासिपमाणं होदि। पुणो दसगुणट्ठारासिणा सासणसम्माइट्ठि
यहां आवलीके असंख्यातवें भाग हानिरूप स्थान प्राप्त होते हैं।
पुनः सम्यग्मिथ्यादृष्टि आदि बारह (सम्याग्मिथ्यादृष्टि, सासादन और संयतासंयतादि १०) गुणस्थानवर्ती राशिसे असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशिको अपवर्तित करके जो लब्ध आवे उसमें एक मिला देने पर जो राशि हो उसके प्रत्येक एकके प्रति असंयतसम्यग्दृष्टि आदि तेरह गुणस्थानवर्ती राशिको समान खण्ड करके देयरूपसे देने पर विरलनके प्रत्येक एकके प्रति सम्यग्मिथ्यादृष्टि आदि बारह (सम्यग्मिथ्यादृष्टि, सासादन और संयतासंयतादि १०) गुणस्थानसंबन्धी राशिका प्रमाण प्राप्त होता है। उसमें बहुभाग असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशिका प्रमाण है।
D54
उदाहरण-१६३८४६६५८% २
-३३२९
+१
२३३२९ ६६५८ ६६५८ ६६५८ ३०६८ इसमें बहुभाग १६३८४ प्रमाण १ १ १ १५३४.
३३२९' असंयतसम्यग्दृष्टि राशि हैं। अनन्तर ग्यारह (सासादन और संयतासंयतादिक १०) गुणस्थानसंबन्धी राशिसे सम्यग्मिथ्यादृष्टि राशिको भाजित करके जो लब्ध आवे उसमें एक और मिलाकर उसका विरलन करके विरलित राशिके प्रत्येक एकके प्रति बारह (सम्यग्मिथ्यादृष्टि, सासादन और संयतासंयतादि १०) गुणस्थानसंबन्धी राशिको समान खंड करके देयरूपसे दे देने पर विरलित राशिके प्रत्येक एकके प्रति ग्यारह (सासादन और संयतासंयतादि१०) गणस्थान. संबन्धी जीवराशिका प्रमाण प्राप्त होता है। वहां बहुभाग सम्यग्मियादृष्टि जीवराशिका प्रमाण है।
.१५३४... .१५३४. उदाहरण-४०९६:२०
२५६२ २५६२ १५३४ इसमें बहुभाग ४०९६ प्रमाण सम्य
२५६२' मिथ्याद्दीष्ट राशि है। अनन्तर दश (संयतासंयतादि १०) गुणस्थानसंबन्धी राशिसे सासादनसम्यग्दृष्टि द्रव्यको अपवर्तित करके जो लब्ध आवे उसमें एक और मिलाकर कुल राशिका विरलन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org