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________________ १०४ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, २, १४. सासण-संजदासंजदाणं अवहारकालो होदि । पुणो तं दो-गुणट्ठाण-अवहारकालं सम्मामिच्छाइट्ठि-अवहारकालेणोवट्टिय लद्धेण सम्मामिच्छाइहि-अवहारकालं गुणेऊण पुणो तेणेव गुणगारेण रूवाहिएण पुव्वं गुणिद-अवहारकालमोवट्टिदे तिण्हं गुणट्ठाणाणमवहारकालो हवदि । पुणो तमवहारकालं असंजदसम्माइट्टि-अवहारकालेणोवट्टिय लद्धण असंजदसम्माइट्टि-अवहारकालं गुणेऊण पुणो तेणेव गुणगाररासिणा रूवाहिएण पुचिल्लगुणिद-अवहारकालमोवहिदे चउण्हं गुणहाणाणमवहारकालो हवदि । पुणो णव-संजददव्वेण चउण्हं गुणट्ठाणाणं दवमोवट्टिय लद्धण चउण्हं गुणहाणाणमवहारकालं गुणेऊण पुणो तेणेव गुणगारेण रूवाहिएण तं चेव गुणिद-अवहारकालमोवट्टिदे तेरसण्हं गुणट्ठाणाणमवहारकालो होदि । अनन्तर उन दोनों गुणस्थानोंके अवहारकालको सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके अवहारकालसे भाजित करके जो लब्ध आवे उसे सम्यग्मिथ्यादृष्टिके अवहारकालसे गुणित करके अनन्तर एक अधिक उसी पूर्वोक्त गुणकारसे पहले गुणित किये हुए अवहारकालके अपवर्तित करने पर सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और संयतासंयत इन तीनों गुणस्थानोंका अवहारकाल होता है। उदाहरण–१२८ : १६ = १२८, १२८ x १६ = १२८, १२ + १ = २०८ ६०१३ ९३६ सा. सम्यमि. और संयतासंयतका अवहारकाल । अनन्तर इन तीनों गुणस्थानोंसंबन्धी अवहारकालको असंयतसम्यग्दृष्टिके अवहारकालसे भाजित करके जो लब्ध आवे उससे असंयतसम्यग्दृष्टिके अवहारकालको गुणित करके पुनः एक अधिक उसी पूर्वोक्त गुणकारसे पहले गुणित किये हुए अवहारकालके अपवर्तित करने पर द्वितीयादि चार गुणस्थानोंका भागहार आ जाता है। उदाहरण-०१३-४ = १२८, १२६ x ४ = १३८, १२८ + १ = १८० १२८ . १८० = २३८ सासादनादि ४ गुणस्थानोंका अवहारकाल । अनन्तर प्रमत्तसंयत आदि नौ संयतोंके द्रव्यसे सासादन आदि चार गुणस्थानोंके द्रव्यको भाजित करके जो लब्ध आवे उससे उक्त चार गुणस्थानोंके अवहारकालको गुणित करके अनन्तर एक अधिक उसी पूर्वोक्त गुणकारसे उसी गुणित अवहारकालको अपवर्तित करने पर सासादनादि तेरह गुणस्थानोंका अवहारकाल होता है। उदाहरण-नवसंयतराशि २, सासादनादि चार गुणस्थानराशि २३०४०, सासादनादि चार गुणस्थानोंका अवहारकाल १२८, २३००० = ११९२० १२८.११५२० - २९४९१२, ११५२० . १. ११५२१ , ४५१ - ९ ' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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