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________________ १, २, १४.] दव्वपमाणाणुगमे ओघ-भागभागपरूवणं [१०३ णवसंजददव्वं संजदासंजददव्वपमाणेण कीरमाणे एगरूवस्स असंखेजदिभागं भवदि । एवमुप्पाइयसव्यसलागाओ एयर्ल्ड काऊण संजदासंजद-अवहारकालमोवाहिय लद्धण पलिदोवमे भागे हिदे तेरसगुणहाणदव्वमागच्छदि । एवं जेसिं जेसिं गुणट्ठाणाणं दव्याण मेगभागहारेणागमणमिच्छदि तेसिं तेसिं सलागाहि संजदासंजद-अवहारकालमोवट्टिय पलिदोवमे भागे हिदे ते ते रासीओ आगच्छंति । अधवा सासणसम्माइट्ठि-अवहारकालेण संजदासंजद अवहारकालमोवट्टिय लद्धेण सासणसम्माइट्ठि-अवहारकालं गुणेऊण पुणो तेणेव गुणगारेण रूवाहिएण तं चेवोवट्टिदे होता है। उदाहरण-१२८ : ४ = ३२४ ५१२ = १६३८४ असंयतसम्यग्दृष्टि द्रव्य, छठेसे लेकर चौदहवें गुणस्थानतक नौ संयतोंका द्रव्य संयतासंयतके द्रव्यके प्रमाणरूपसे करने पर एकरूप जो संयतासंयतका द्रव्य कह आये हैं उसका असंख्यातवां भाग होता है। उदाहरण-२:५१२= ३५६४५१२ = २ नवसंयत द्रव्य. इसप्रकार पहले उत्पन्न की हुई संपूर्ण शलाकाओंको एकत्रित करके और उनसे संयतासंयतसंबन्धी अवहारकालको अपवर्तित करके जो लब्ध आवे उससे पल्योपमके भाजित करने पर सासादनसम्यग्दृष्टि आदि तेरह गुणस्थानवी जीवराशिका प्रमाण आ जाता है। उदाहरण-१+४+ ८+ ३२+२६४ = ४५२५६ ३२७६८ १२८ : ४५२१६ - १९५२२ ६५५३६ ५ २३५३३ - २३०४२. इसीप्रकार जिन जिन गुणस्थानोंके द्रव्यका प्रमाण एक भागहारसे लानेकी इच्छा हो उन उन गुणस्थानोंकी शलाकाओंसे संयतासंयतसंबन्धी अवहारकालको अपवर्तित करके जो लब्ध आवे उसका पल्योपममें भाग देने पर उन उन गुणस्थानोंकी राशियां आ जाती हैं। उदाहरण-असंयतसम्यग्दृष्टि शलाकाराशि ३२, १२८:३२% ४, ६५५३६:४=१६३८४ असंयतसम्यग्दृष्टि द्रव्य. अथवा, सासादनसम्यग्दृष्टिके अवहारकालसे संयतासंयतके अवहारकालको अपवर्तित करके नो लब्ध आवे उससे सासादनसम्यग्दृष्टिके अवहारकालको गुणित करके जो लब्ध आवे उसे एक अधिक उसी गुणाकारसे अपवर्तित करने पर सासादनसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत इन दोनोंका अवहारकाल आ जाता है। उदाहरण-१२८ : ३२ = ४, ३२४ ४ = १२८, ४+ १ =५, १२८ : ५ - २५३ सासादन और संयतासंयतका अवहारकाल । इसका भाग पल्योपम ६५५३६ में देने पर सासादन और संयतासंयत इन दोनों गुणस्थानोंका द्रव्य २०४८+ ५१२ = २५६० आ जाता है। इसीप्रकार आगे भी जानना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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