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________________ १०२) छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, २, १४. जीवरासिमेत्ते भागे कदे तत्थ बहुभागो मिच्छाइट्ठिरासिपमाणं होदि । सेसं तेरसगुणट्ठाणोवहिदासिद्धरासिणा रूवाहिएण खंडिदे बहुखंडा सिद्धा हवंति । सेसाणं भागभागपरूवणहं सेसरासीओ एगभागहारेणाणिज्जते । तं जहा- संजदासंजददव्वं तप्पमाणेण कीरमाणे एगं भवदि । सासणसम्माइट्ठिदव्यं पि संजदासंजददव्यपमाणेण कीरमाणे सासणसम्माइट्ठि-अवहारकालेणोवट्टिदसंजदासंजद-अवहारकालमत्तं हवदि । सम्मामिच्छाइटिदव्वं संजदासंजददव्वपमाणेण कीरमाणे सम्मामिच्छाइट्ठि-अवहारकालेणोवट्टिदसंजदासंजद-अवहारकालमत्तं भवदि । असंजदसम्माइट्ठिदव्यं पि संजदासंजददव्वपमाणेण कीरमाणे असंजदसम्माइट्ठि-अवहारकालेणोवहिदसंजदासंजद-अवहारकालमत्तं भवदि । सिद्धराशि और सासादनसम्यग्दृष्टि आदि तेरह गुणस्थानवी जीवराशिके प्रमाणका संपूर्ण जीवराशिमें भाग देने पर जो प्रमाण आवे उतने संपूर्ण जीवराशिके भाग करने पर उनसे बहुभाग मिथ्यादृष्टि जीवराशिका प्रमाण है। जो एक भाग शेष रहता है उसे, सासादन आदि तेरह गुणस्थानवी जीवराशिके प्रमाणसे भाजित सिद्धराशिमें रूपाधिक करके जो जोड़ हो उससे खण्डित करने पर जो बहुभाग आवे उतने सिद्ध होते हैं। उदाहरण-सर्व जीवराशि १६, सिद्ध २, सासादन आदि १; १६:३ = ५३ ३ ३ ३ ३ ३ १ बहुभाग १३ मिथ्यादृष्टि १ १ १ १ १ १ और ३ सिद्धतेरस. २१%D२+१%3D३, ३३% १, ३-१=२सिद्धः १ सासादन आदि. अब शेष राशियोंके भागाभागके प्ररूपण करनेके लिये शेष राशियां एक भागहारसे लाई जाती है । उसका स्पष्टीकरण इसप्रकार है संयतासंयत जीवराशिके द्रव्यको उसी प्रमाणसे (शलाकारूप) करने पर एक होता है (५१२ = १ पिंडरूप)। सासादनसम्यग्दृष्टिका द्रव्य भी संयतासंयतके द्रव्यप्रमाणसे करने पर सासादनसम्यग्दृष्टि अवहारकालका संयतासंयत अवहारकालमें भाग देने पर जो लब्ध आवे तत्प्रमाण होता है। उदाहरण-१२८: ३२% ४४५१२ = २०४८ सासा. सम्यग्मिथ्यादृष्टिका द्रव्य संयतासंयतके द्रव्यप्रमाणरूपसे करने पर सम्यग्मिथ्यादृष्टि भवहारकालका संयतासंयत अवहारकालमें भाग देने पर जो लब्ध आवे तत्प्रमाण होता है। उदाहरण-१२८:१६८४५१२% ४०९६ सम्यग्मिथ्यादृष्टि द्रव्य. असंयतसम्यग्दृष्टिका द्रव्य भी संयतासंयतके द्रव्यके प्रमाणरूपसे करने पर असंयतसम्यग्दृष्टि अवहारकालका संयतासंयत अवहारकालमें भाग देने पर जो लब्ध आवे तत्प्रमाण १ प्रतिषु सुसम्बो' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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