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________________ ८४] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, २, ६. करिय भागहारद्धच्छेदणया उप्पाएदव्या । सव्वत्थ दुगुणादिकरणं कादव्वं । गहिद. परूवणा गदा। गहिदगहिदं वत्तइस्सामो। तं जहा, पलिदोवमस्स असंखेजदिभागेण वेरूवधाराए उवरि इच्छिदवग्गे भागे हिदे जं भागलद्धं तेण तम्हि चेव वग्गे भागे हिदे सासणसम्माइहिरासी आगच्छदि । तस्स भागहारस्स अद्धच्छेदणयमेत्ते रासिस्स अद्धच्छेदणए कदे वि सासणसम्माइहिरासी आगच्छदि । एवमुवरि सव्वत्थ कायव्वं । वेरूवपरूवणा गदा। अहरूवे वत्तइस्सामो । घणपल्लपढमवग्गमूलस्स असंखेजदिभागेण सासणसम्माइहिरासिणा उवरि इच्छिदवग्गे भागे हिदे जं भागलद्धं तेण तम्हि चेव वग्गे मागे हिदे सासणसम्माइद्विरासी आगच्छदि । तस्स भागहारस्स अद्धच्छेदणयमेत्ते ६५५३६४३२७ ५५३६४३२ करण कर लेना चाहिये । इसप्रकार गृहीत उपरिमविकल्प प्ररूपणा समाप्त हुई। अब गृहीतगृहीत उपरिम विकल्पको बतलाते हैं। वह इसप्रकार है-पल्योपमके असंख्यातवें भाग (सासादनसम्यग्दृष्टिराशि) का द्विरूपवर्गधारामें ऊपर इच्छित वर्गमें भाग देने पर जो भाग लब्ध आवे उसका उसी इच्छित वर्गमें भाग देने पर सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशिका प्रमाण आता है। उदाहरण-६५५३६ का इच्छित वर्ग ६५५३६२ ६५५३६५ २०४८ ६५५३६-३२-२०४८सा. उक्त भागहारके जितने अर्धच्छेद हों उतनीवार उक्त भाज्य राशिके अर्धच्छेद करने पर भी सासादनसम्यग्दृष्टि राशि आती है। उदाहरण-उक्त भागहारके २१ अर्धच्छेद हैं, अतः इतनीवार उक्त भज्यमान राशिके अर्धच्छेद करने पर २०४८ प्रमाण सासादनसम्यग्दृष्टि राशि आती है। इसीप्रकार ऊपरके वर्गस्थानों में भी सर्वत्र करना चाहिये । इसप्रकार द्विरूपवर्गधाराकी प्ररूपणा समाप्त हुई । अब घनधारामें गृहीतगृहीत उपरिम विकल्पको बतलाते हैं - घनपल्यके प्रथम वर्गमूलके असंख्यातवें भागरूप सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशिका ऊपर इच्छित वर्गमें भाग देने पर जो भाग लब्ध आवे उसका उसी इच्छित वर्गमें भाग देने पर सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशिका प्रमाण आता है। उदाहरण-घन ६५५३६३ का प्रथम वर्गमूल २५६३ ३६३४६५५३६३ = ६५५३६५४३२ २५६४३२ २०४८, २०४८ ६५५३६६ ६५५३६४३२% २०४८ सा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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