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________________ १, २, ६. ] दव्वपमाणाणुगमे सासणसम्माइट्टि आदिपमाणपरूवणं [ ८३ घणपल्लवरिमवग्गेण घणाघणे भागे हिदे घणपल्लो आगच्छदि । पुणो वि पदरपल्लेण घपले भागे हिदे पलिदोवमो आगच्छदि । पुणो वि असंखेज्जावलियाहि पलिदोवमे भागे हिदे सासणसम्माइट्ठिरासी आगच्छदि । एवमागच्छदि त्ति कट्टु गुणेऊण भागग्गहणं कदं । तस्स भागहारस्स अद्धच्छेदणयमेत्ते रासिस्स अद्धच्छेदणए करे वि सासणसम्माइसी आगच्छदि । तस्सद्धच्छेदणयसलागा केत्तियां ? एगघणाघणवग्गसलागं विरलिय विगं करिय अण्णोष्णन्भत्थकदणवगुणरूवूणरासिणा पलिदोवमद्धच्छेदणए गुणिय असंखेज्जावलियाणं अद्धच्छेद्णयपक्खित्तमेत्ता । एवं दोणि चत्तारि - आदि-वग्गडाणाणि विरलिय विगुणिदण्णोष्णमत्थणवगुणरूवूणरासिणा पलिदोवमद्धच्छेदणा गुणिय सादिरेगा आता है । पुनः घनपल्यके उपरिम वर्गका घनाघनपत्य में भाग देने पर घनपल्य आता है । पुनः प्रतरपल्यका घनपल्य में भाग देने पर पल्योपम आता है । पुनः असंख्यात आवलियोंका पल्योपममें भाग देने पर सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशिका प्रमाण आता है । घनाघनधारा में इसप्रकार भी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशिका प्रमाण आता है, इसलिये पहले गुणा करके अनन्तर भागका ग्रहण किया । ६५५३६ x ६५५३६ उदाहरण = २०४८ सा. ३२४ ६५५३६' x ६५५३६ x ६५५३६ x ६५५३६ उक्त भागहारके जितने अर्धच्छेद हों उतनीवार उक्त भज्यमान राशिके अर्धच्छेद करने पर भी सासादन सम्यग्दृष्टि जीवराशिका प्रमाण आता है । उदाहरण – उक्त भागहारके २७७ अर्धच्छेद होते हैं, अतः इतनीवार उक्त भाग्य राशिके अर्धच्छेद करने पर २०३८ प्रमाण सासादनसम्यग्दृष्टि राशि आती है । शंका- उक्त भागद्दारकी अर्धच्छेदशलाकाएं कितनी होती हैं ? समाधान - घनाघनरूप एक वर्गशलाकाका विरलन करके और उसे दो रूप करके परस्पर गुणा करनेसे उत्पन्न हुए दोको नौसे गुणा करने पर जो राशि उत्पन्न हो उसमेंसे एक कम करके जो शेष रहे उससे पल्योपमके अर्धच्छेदोंको गुणित करके जो लब्ध आवे उसमें असंख्यात आवलियोंके अर्धच्छेदों के मिला देने पर उक्त भागहार के अर्धच्छेदोंका प्रमाण आ जाता है । उदाहरण – २ = २४ ९ = १८ - १ = १७ x १६ = २७२ + ५ = २७७. १ इसीप्रकार दो वर्गस्थान या चार वर्गस्थान आदि ऊपर गये हों तो दो या चार आदिका विरलन करके और उस विरलित राशिके प्रत्येक एकको दोरूप करके परस्पर गुणा करनेसे जो राशि आवे उसे नौसे गुणा करके जो लब्ध आवे उसमेंसे एक कम करें, जो शेष रहे उसे पल्योपमके अर्धच्छेदोंसे गुणित करके जो लब्ध आवे उसमें असंख्यात आवलियोंके अर्धच्छेद मिला कर सर्वत्र भागहार के अर्धच्छेद उत्पन्न कर लेना चाहिये । सर्वत्र द्विगुणादि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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